शिक्षित स्वार्थ कहानी Educated Selfishness Story रोशन स्वभाव से अत्यंत सरल और निश्छल व्यक्ति था। उसने जीवनभर किसी का अहित नहीं किया, न कभी किसी के प्रति दुर्भावना रखी। उसके मन में सदा दूसरों के कल्याण की भावना ही रही। उस दिन भी, जब वह अपनी मोटरसाइकिल (गाड़ी) से अपनी बेटी के ससुराल जा रहा था, रास्ते में एक व्यक्ति ने हाथ देकर लिफ्ट मांगी। दयालु रोशन ने बिना संकोच गाड़ी रोक दी और उसे बैठा लिया।
Educated Selfishness Story
बातचीत के दौरान ज्ञात हुआ कि वह व्यक्ति उसी गांव का रहने वाला है, जहां उसने लिफ्ट मांगी थी। उसे वहीं जाना था जहां रोशन जा रहा था ।
किंतु उसके स्वर में नाराज़गी झलक रही थी। उसने बताया कि वह सुबह से ही राहगीरों से लिफ्ट मांग रहा था, पर किसी ने उसकी ओर ध्यान नहीं दिया। उसने कोसते हुए कहा कि आजकल इंसानियत मर चुकी है । उसकी बात सुनकर रोशन के मन में करुणा उमड़ आई — उसने सोचा, "मनुष्य कितना स्वार्थी हो गया है, जो राह में किसी अजनबी की छोटी-सी सहायता भी नहीं कर पाता।"
वह व्यक्ति गर्व से कहा कि वह एक शिक्षित व्यक्ति है। उसके विचार में शिक्षा वह अमृत है, जो मनुष्य के भीतर आत्मविश्वास और साहस भर देता है। वह मुस्कराकर बोला — “शिक्षा तो शेरनी का दूध है; जो इसे पिएगा, वह जीवन में अवश्य दहाड़ेगा।”
उसकी बातों से पता चल रहा था कि समाज में सुधार की सख़्त ज़रूरत है । इसके लिए वह लोगों को बताते हैं कि पढ़ना लिखना चाहिए । ताकि रूढ़िवादी विचारधारा से निकल सकें । वह देश की दुर्दशा के लिए अंधविश्वासों और शिक्षा की कमी को जिम्मेदार ठहराता था । बातों ही बातों से पता चल रहा था कि वह देश को कोसने वाले इंसान है । सारी चर्चा में उसने देश में कमियां ही निकालीं । ऐसा लगता था कि ऐसे ही लोगों की सख्त जरूरत है । जो समाज में बदलाव ला सकें । वो उससे प्रभावित हो रहा था ।
रोशन फिर सोचने लगते यदि ये इतने ही अच्छा है तो रोड़ पर खड़ा हो कर लिफ्ट क्यों मांग रहा था । क्या ये गरीब आदमी है ? उसने पूछा तो पता चला कि, उसके पास पर्याप्त धन-दौलत है । उसकी मोटरसाइकिल (गाड़ी)को कोई और ले गया है ।
"जाना इतना ही आवश्यक था तो किसी साइकिल वाले के साथ चले जाना था, वे लोग मना तो नहीं करते," रोशन ने शांत स्वर में कहा।
वह व्यक्ति हल्का-सा मुस्कराया, "साइकिल पर?... नहीं, आजकल साइकिल पर जाना अच्छा नहीं लगता।"
रोशन मन ही मन मुस्करा उठा — लगता है, जनाब ने अब अपना ‘स्टेटस’ ऊँचा कर लिया है। खैर, मुझे क्या! जब जाना इतना ज़रूरी था, तो कोई भी साधन अपना लिया होता। इस तरह इतराते हुए यूँ इंतज़ार करना तो व्यर्थ ही है।
बातें हो रही थीं, और जहां जाना था,वह करीब एक किलोमीटर दूर ही था । तभी अचानक रोशन को लगा कि गाड़ी लहरा रही है । अचानक उसने ब्रेक लगाया और गाड़ी से उतर कर देखा तो पता चला कि उसकी मोटरसाइकिल (गाड़ी) पंचर हो गई है ।
अब क्या करे! उसने इधर-उधर नज़र दौड़ाई — आसपास कोई नहीं था। दूर-दूर तक न कोई घर था, न आदमी दिखाई दे रहा था।
पंचर मोटरसाइकिल को खींचना बहुत थकाने वाला काम होता है। तभी अचानक उसे याद आया — “अरे! मैंने जिसे लिफ्ट दी थी, वह तो मेरे साथ ही है। वह ज़रूर मदद करेगा, आखिर शिक्षित आदमी है।” यह सोचकर उसे कुछ संतोष मिला।
“मदद करना, भाई! गाड़ी पंचर हो गई है, ज़रा धक्का लगा दो ताकि इसे पास तक ले जा सकूं,” रोशन ने विनम्रता से कहा।
परंतु वह आदमी कुछ नहीं बोला। उसने भी इधर-उधर नज़र दौड़ाई। तभी उसे सामने से एक दूसरी मोटरसाइकिल आती हुई दिखाई दी। जब वह पास आई तो उसने लिफ्ट मांगी।
“मुझे जनपद कार्यालय जाना है, बहुत ज़रूरी काम है,” इतना कहकर वह उस मोटरसाइकिल पर सवार हो गया।
वे मोटरसाइकिल वाले रोशन से बोले, “क्या हुआ भाई?” मगर उसके साथ आए व्यक्ति ने बीच में ही कह दिया, “मोटरसाइकिल पंचर हो गई है,” और वे लोग चले गए।
रोशन ने अपनी मोटरसाइकिल ज़रा भी नहीं खींची थी कि उसे थकान महसूस होने लगी — यह थकान शरीर की नहीं, मन की थी। उसे दुख इस बात का था कि लोग इतने स्वार्थी क्यों हो गए हैं। मतलब निकलने तक बड़ी-बड़ी बातें करते हैं, और ज़रूरत पड़ने पर मुंह मोड़ लेते हैं।
उसे लगा कि ऐसे ही दोहरे स्वभाव वाले लोगों की वजह से मनुष्य के भीतर की इंसानियत धीरे-धीरे मर रही है।
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