आखिरी बेंच का लड़का Last Bench Boy Story

  Last Bench Boy Story वह आखिरी बेंच का लड़का था। ग्यारहवीं कक्षा के अंतिम महीनों में, अप्रैल के आखिरी दिनों में, वह अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहा था। धूप और गर्मी तेज हो गई थी, इसलिए वह खिड़की के पास बैठता था। स्कूल के बाहर अतिरिक्त कक्षाओं का निर्माण चल रहा था, और लड़के की नजरें अक्सर बाहर ही जाकर टिकती थीं।

 Last Bench Boy Story

शिक्षकों को अक्सर लगता है कि कमजोर और धीमे बच्चे आखिरी बेंच पर ही बैठते हैं। स्वाभाविक रूप से, उसने भी यही माना। लेकिन इस धारणा के कारण उसके प्रति पूर्वाग्रह बना लिया। पढ़ाई में उसे उपेक्षित किया जाता था, खासकर विज्ञान के शिक्षक द्वारा।



एक दिन इसी पूर्वाग्रही धारणा से आखिरी बेंच के लड़के से सवाल पूछ लिया - 


"बताओं धूप और छांव में क्या अंतर है ? "शिक्षक पूछकर मुस्कुराया । बाकी बच्चों को देखकर । बच्चे भी मुस्कुराए,, शिक्षक को देखकर । खासकर वे बच्चे जिसे शिक्षक पसंद करते थे । 


"आपकी उम्र क्या होगी !"लड़का ने पलटकर सवाल पूछा । पूरे विश्वास से । 


शिक्षक को तत्क्षण गुस्सा आया । इस जवाब की उम्मीद नहीं थी । लग तो रहा था । दो-चार झड़ दें । मगर बाकी बच्चे, क्या सोचेंगे ? 


"क्यों ?"


नाराजगी और गुस्से से । 


"आपके सवाल का जवाब दूंगा !"

धैर्यपूर्वक, धीमी आवाज में । 


"पचपन साल !"


"उसकी उम्र क्या होगी ?"


खिड़की से बाहर काम कर रहे मजदूरों की ओर इशारा करते हुए सवाल पूछा । 


"छत पर छड़ बाध रहा है उसका । जो अकेले में हैं । "


"हां, हां "


"साठ साल का होगा । बुजुर्ग हैं । "


"नहीं , साठ साल के तो नहीं है । पचास का है । मैं समझता हूं कि धूप और छांव का जवाब मिल गया होगा । आप छांव में हैं इसलिए चालीस - पैंतालिस के दिखते हैं । वो धूप में हैं तो साठ साल का दिखाई दे रहे हैं । पता है आपको,,, वो मेरे पिताजी जी हैं । "


शिक्षक उस लड़के के जवाब से स्तब्ध रह गया। कक्षा में एक अजीब सी खामोशी छा गई, जैसे सब कुछ थम गया हो। आखिरी बेंच के उस लड़के ने अ

पनी बात से सबको चुप करा दिया था।

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