अपना अपना तर्क Your Own Argument

 Your Own Argument मुझे जब भी मिला, वो अक्सर कहते थे । साली कूतिया मुझे छोड़ गई । मैं उसे कितना प्यार करता था । शहर के किस होटल में नहीं ले गया । कौन सा माल ? कौन से टॉकिज बचा है ? कौन सा होटल, जहां खाना नहीं खिलाया । जब कहते तब खड़ा था । उसके लिए । मगर मुझे समझा ही नहीं । जिस दिन मिल जाएंगी । जान से मार दूंगा । ऐसा कहकर वह अपने क्षुब्ध मन को समझता था । अपना गुस्सा और नफ़रत , मुझे जताने का प्रयास किया। मुझे लगा अत्यधिक लगाव की वजह से है । 

Your Own Argument

मुझे अक्सर कहता था कि तू ही बता । क्या मैंने प्यार नहीं किया ! उसके लिए गांव की जमीन बेच दी । मैं आज बर्बाद हो गया हूं । 


कई बार मुझे उस लड़की से मिलाया था । मेरे सामने ही दोनों दिल की बातें करते थे । दोनों के बीच मैं ही गवाह था । जब पहली बार मिलाया तो मुझसे पूछा था - लड़की कैसी है ! सुन्दर है ना । 

मुझे भी लगा, लड़की बहुत सुंदर है । लेकिन मैंने सचेत भी किया था । ये लड़की कुछ ज्यादा ही आधुनिक शैली में जीती है । उसके हर चीज़ मेचिंग में है । नेलपालिश से लेकर बिंदी,जूती, कपड़े, आदि सभी । तुम इसके खर्चें और नखरें नहीं उठा पाओगे । फिर भी उसे यकीन नहीं हुआ । साथ रहे । बहुत दिनों तक । 

पिछले दो सालों में ऐसा क्या हुआ कि दोनों अलग-अलग हो गए । लड़का, हमेशा लड़की की शिकायते करते रहते हैं । मैं जब भी उससे मिला । 

उसके गुस्से की वजह से मेरी सलाह फालतू थी । अभी उसकी भावनाओं बची थीं। कभी बड़बड़ाते, कभी समझाते । खुद को । 

उसी शहर से में जब था । अचानक एक दिन उस लड़की से मुलाकात हो गई । उसने मुझे पहचान लिया । व्यवहारिक अभिवादन किया । उसने मेरा हालचाल पूछा । मैंने बताया जितना सामान्य था । उससे पूछा तो उसने भी कहा सब ठीक है । फिर चुप हो गई । कोई निजी बातें नहीं हुई । कुछ देर चुप रहने के बाद मैंने उससे पूछा


" और बताओं मेरा दोस्त कैसा है "। 

उसने कुछ नहीं कहा । चुप रही । ऐसा लगा जैसे वो उसके बारे में कुछ कहना नहीं चाहती थी । शायद ! समझदारी दिखा रही थी । बहुत देर चुप रहने के बाद बोली -" आप उससे मिला हो तो वो मेरी बहुत बुराई की होगी"  । 


"हां,,बुराई नहीं शिकायत की है "। 


"मैं उसका नाम भी नहीं लेती हूं । यही तो समझदारी नहीं है । कुछ लोगों में " । 


इसमें समझदारी जैसी उलाहना क्यों देते हो । इतने जल्दी रिश्ते खत्म थोड़े होते हैं । कुछ समय लगता है । 


मुझे तो नहीं लगा । आप खुद देखिए मुझे और उसे । उसके विचार प्रोगेसिव नहीं है । दकियानूसी, पुराने खयालात के हैं । 


शिकायत वहीं करते हैं जो जुड़े हैं दिल से । जिसकी जरूरत है ..! उससे तो और अधिक.. जो जरूरी हो । एक बार बात कर लोगे तो शायद सबकुछ भूल जाएगा । वो तुम्हें चाहता बहुत है । 


तुम और तुम्हारे दोस्त,, मुझे पसंद नहीं है । मैं खुले जीवन जीने वाला हूं । बंद कमरे से केवल खिड़कियों से झांक सकते हैं । इस संसार को । मैं बाहर की दुनिया से हूं । 


इतना कहकर वो चली गई । ठगा सा मैं खड़ा रह गया । आखिर ऐसी सोच वालों से मैं क्यों बात कर बैठा । सोचता रहा लेकिन खुद को जवाब नहीं मिला । 




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