us-haters-ghazals-
तेरी अक्लमंदी में कितनी ज़हर है
तेरी अक्लमंदी में कितना ज़हर है
तेरे संस्कार में गाली का असर है
सुनते होंगे तेरी बातों को तेरे अपने
हां,मैं जानता हूं ऐसा ही तेरा शहर है
नफरती सोच उजागर हो गई है
गला काटने के बाद समर्थन का असर है
आखिर कब तक छुपाते सियासी एजेंडे
तेरा सच तेरी सुविधा में अगर-मगर है
अब मान भी जाओ तुम भी सही नहीं
क्यों गैरों के लिए तेरे सीने में ज़हर है
एक बदलाव उठती है चारों ओर से
कुछ न कुछ तेरे घर में भी कहर है
मैं जानता हूं तेरे शहर की आबोहवा
एक घूटन सी जिंदगी जहां जीना ज़हर है !!!
us-haters-ghazals
मैं उसकी बुराई जानता था
जो मुझे समझाता था
अपनी बुराई दूर करो
और मैं सुन लेता था
यह कहकर ये मेरे हितों में है
परिवर्तन की कोशिश
बदल देता था
स्थायी पन में
परिष्कृत और नयापन
अपने हिसाब से
फिर उसने मुझे
बदलने की कोशिश की
अपने हिसाब से
अपने मनमाफिक
लेकिन मैं समझ गया
बदलना मेरा ठीक नहीं है
उसके जैसे
उसमें बुराई है
मैं जानता था
कह नहीं पाऊंगा
वो मेरे जैसे थोड़े हैं
जो बदल लेंगे खुद को
गला काट देंगे
जो मैं सह न पाऊंगा
इसलिए अब मैं बदलना नहीं चाहता
किसी के कहने पर !!!!
दोगलों ने
मानव जीवन को
संशय में डाला है
हर अच्छी चीजों को
तर्क कर फर्क कर डाला है !!!!
नफ़रत
जब बहसों में शामिल हो जाती है
तब आलोचना बनकर
खिल्ली उड़ानें लगती है
ज्ञान दिग्भ्रमित, दिशाहीन
थकावट ले आती है
तुम सुनना चाहते हो
सुकून की बातें
नहीं नहीं यहां मिलेंगी
तुम्हें सिर्फ घातें
फिर पछताते हैं
व्यर्थ रहा चिंतन मनन !!!
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-rajkapur rajput
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