सफ़र--Safar-a-jindgi-kahani-hindi-sahitya-jivan

सफ़र ए-जिंदगी Safar-a-jindgi-kahani-hindi-sahitya-jivan


एक बार दो दोस्त सफ़र पर जा रहे थे । रास्ते पर उन दोनों को लोहे की छड़ी मिली । जिसका वजन दस किलो के समान था । दोनों ने रखना उचित समझा । यही सोच कर कि कुछ तो कीमत देगी और दोनों पुनः सफ़र पर निकल पड़े ।

कुछ दूर जाने के बाद चांदी की छड़ी मिली । जिसका वजन भी दस किलो के बराबर था । दोनों ने सोचा कि अब क्या करें । हमारे पास तो लोहे की छड़ी है । चांदी की छड़ी रखने से वजन ज्यादा हो जाएगा । एक ने सोचा कि पहले मुझे लोहा मिला है । भला मैं कैसे इसे छोड़ सकता हूं और उसने लोहा रख लिया । दूसरे ने सोचा कि लोहे की छड़ी को छोड़ देता हूं ताकि सफ़र आसान बना रहे और अपने सफ़र पर निकले पड़े । पहले व्यक्ति को कुछ दूर चलने के बाद कठिनाई महसूस होने लगी । दूसरे व्यक्ति आसानी से चल रहे थे ।

कुछ दूर जाने के बाद उन दोनों को सोने की छड़ी मिली । पुनः उन दोनों ने विचार किया । दूसरे व्यक्ति ने कहा कि हम लोग सोने की छड़ी बेचकर लोहे और चांदी की और छड़ी खरीद सकते हैं । चुंकि हम दोनों का सफर अभी बाकी है । इसलिए लोहे और चांदी की छड़ी को छोड़ देते हैं । जिससे सफ़र आसान होगा । तब पहले व्यक्ति ने कहा " नहीं लोहे की छड़ी पहले मिली है । इससे हमारी भावनाएं जुड़ी हुई है । भला हम लोग लोहे और चांदी की छड़ी को केसे छोड़ सकते हैं । पास ही रख लिया ।

दूसरे व्यक्ति ने चांदी की छड़ी भी छोड़ दी और सोने की छड़ी लेकर सफ़र पर चलने लगे ।

पहले व्यक्ति को तकलीफ़ होने लगी । वहीं बैठ गया । जबकि दूसरे व्यक्ति अपने गंतव्य तक पहुंच गए ।

कहने का सार ——

जितना कम सामान रहेगा

उतना सफ़र आसान रहेगा 

-राजकपूर राजपूत

Safar-a-jindgi-kahani-hindi-sahitya-jivan


Reactions

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ