प्रेम का मतलब - कविता love-means-poetry-meregeet-literature-life

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प्रेम का होना

तभी है
जब तुम्हारा प्रेम
तुम्हारे ख्यालों में आता जाता रहे
अनायास ही
तुम्हारा मन जिसमें लगा रहे
बाहरी दुनिया से हट कर

ऐसा भी नहीं कि
जब मुलाकात हो
तब बात हो
अभी - अभी तो
या कल परसों तो
मुलाकात हुई थी
तब बात हुई थी
जैसे सब मिलते हैं
कभी कभी
वैसे हम भी मिल जाएगे
कभी कभी
ये प्रेम नहीं है
व्यवहार है
जिसमें सामने वाले का
मान रखा जाता है
उदासीनता से

यदि प्रेम है तो
प्रेमी को देखते ही
मचल जाना चाहिए
तुम्हारा हृदय
जितनी बातें हो
लेकिन कम लगे
तुम्हारे हृदय को
और जब जाए तो
हृदय टूट जाय
जैसे भगवान रूठ जाय !!!

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प्रेम
जब तक समर्पण नहीं किया
अपना अहंकार
तब तक
दो व्यक्ति हैं
प्रेम
जिस दिन
समर्पण कर दिया
अपना सर्वस्व
उस दिन एक है !!

प्रेम में
टूटा नहीं था दिल
जुड़ा था
आपस में
जब तक
तुमने दिखाया नहीं
अपने इरादे एक
मैं समझता रहा
हम एक !!!

आजकल कठिन है
एक होना
क्योंकि
तुम सोचते हो
अपने दिल की
जैसे दुनिया सोचती है
अपने हितों के लिए
जो कठिन है
दूसरों के हितों से
संबंधित विचार मिलना !!!


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-राजकपूर राजपूत

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