आदमी आजकल तनाव में हैं
अपने ही ख्यालों के घेराव में हैं
बस्ती में लगा के आग मुस्कुरा रहे हैं
देखो ! वो सफेदपोश चुनाव में है
समझाने के बाद भी समझ नहीं पाया
वो आदमी किसी के लगाव में है
मौकापरस्ती का आलम ऐसा चढ़ा
दुश्मन तो दुश्मन दोस्त भी दांव में है
उतर कर नशा फिर चढ़ जाता है
आदमी संभल कर भी क्यों बहाव में है
बहलाना है या समझाना है उस विद्वान का
सुना नहीं मेरा बस सुनाने के भाव में है
मैं काफ़िर ही सही मगर तुम तो अच्छे हो
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