अंतर कर नहीं पाते
सच और झूठ में
निर्धारित नहीं है
समझ की सीमा
कभी भी मुंह खोल जाते हैं
कुछ भी बोल जाते हैं
उद्दंडतापूर्वक हठ है
अपनी बातों को
मनवाने के लिए
कई तर्क हैं
जिसकी दिशा ही नहीं है
कहां जाकर रूकेगी
कहां जाकर झुकेगी
लोग अपने मतलब में
इतने गिर गए हैं
अपनी सीमा भूल गए हैं !!!!
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