poetry on orthodoxy
अपनी सुविधा में ज्ञान की बातें कौन नहीं जानता
मतलब निकल गए तो किसी की पहचान नहीं जानता
आदमी रूढ़िवादियों में बंध गए ज्ञान का रट्टा मार के
ज्ञान सोशल मीडिया पे डालते हैं जिसे कौन नहीं जानता
poetry on orthodoxy
अपनी सुविधा से रिश्ते बनाए
जब मर्जी रिश्ते हटाए
कौन नहीं जानता है आजकल
आदत में शामिल है रिश्ते बनाए !!!!
अपनी सुविधा पहचाने सब
रिश्तों को तुम जाने कब
जब चाहे हाथ छुड़ाकर चले गए
हमारे दर्द जाने कब
ज़रूरतों की आजकल क़ीमत है
उसने मतलब निकाले न जाने कब !!!
रूखे चहरे पे मतलब की लकीरें
सबसे दोस्ती मतलब के तीरे
आज और कल की गारंटी नहीं
कब पीठ थपथपाई और चीरें !!!
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