Ghazal Prem.
ये अच्छा बहाना है
आपका क्या कहना है
इश्क नहीं तुझे मुझसे
और मेरे साथ रहना है
दुश्मनों से हॅंस के मिले
उसे मेरा दिल जलाना है
रखें हैं हाथों में खंजर वो
और मुझे गले लगाना है
पसंद नहीं, व्यवहार दिखावे का
कोई मतलब उसे निकालना है
सियासत में सब जायज़ है यारो
केवल झूठे वादे में फंसाना है !!!
Ghazal Prem
सियासत वो भी करने लगे
प्यार नहीं और प्यार जताने लगे
सच की बातें गहरी है
झूठ से अजमाने लगे
आ गले लग जा अब
खंजर रखकर बुलाने लगे
अभी उसने मोहब्बत नहीं सीखी
और प्यार की बातों में उलझाने लगे !!!
लौटकर आया दुःख
जैसे मेरा अपना था
जो मुझे जानता था
मेरा मन, मेरा तन
मेरी आत्मा
और मुझे फिर मिला देता है
मेरा सुख
जो चला गया है
कब के
जिसकी कोई ख़बर नहीं
जैसे लौट कर आना नहीं
पीड़ाओं से
सुकून
खींचकर !!!!
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