आजकल के लोगों से

Ghazal on social system

 आजकल के लोग 

आजकल के लोगों से डर गया हूॅं मैं

सभी मिलते हैं लेकिन संभल गया हूॅं मैं

वो आदमी है कि गिरगिट समझ न पाया

उसकी चुनावी भाषणों से डर गया हूॅं मैं

उसकी वादाखिलाफी जगजाहिर है

मीठी-मीठी बातों से डर गया हूॅं मैं

जबतक फैसला नहीं होगा सही-गलत का

इस जमाने के अक्लमंदों से डर गया हूॅं मैं

कई गुप्त इरादे छुपा के रखते हैं लोग

उसकी मधूर मुस्कान से डर गया हूॅं मैं !!

Ghazal on social system

आजकल के लोग

रोते तो बहुत हैं 

कोसते तो बहुत हैं

उन अच्छी बातों के लिए

जिसे दूसरों से उम्मीद है

मगर खुद अपनाते नहीं !!!!

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