योग Yoga on poem

जीवन में जब रिक्तता का अहसास हो ।Yoga on poem  जहां ठहरने के लिए कोई न खास हो । वहां योग जोड़ते हैं । किसी के कमी को पूर्णता से । जहां ज्ञान ज्योति कलश रूप प्रज्वलित हो कर । जीवन को प्रकाशित करते हैं । योग आध्यात्मिक प्रकिया है । जिसमें मन और आत्मा को जोड़ा जाता है । आंतरिक रूप में । बाह्य रूप में शरीर और प्रकृति के क्रियाकलापों का संतुलन करने का नाम  योग है । योग जीवन में जरूर अपनाइये । पढ़िए इस पर कविता 👇👇

Yoga on poem 

 योग कोई बहस का मुद्दा नहीं है

जिस पर बहस किया जाय
हिन्दू-मुस्लिम-ईसाई से परे हैं
जिसे हिन्दूओं का कहा जाय
न ही योग किसी का विचार है
जिसका विरोध किया जाय
योग तो जोड़ है
शरीर और मन का
आत्मा और तन का
संतुलन है योग
प्रकृति और परमात्मा का
मार्ग है जीवन का
जिसे अपनाकर
सम्पूर्ण सृष्टि का
अहसास किया जाता है
खुद के भीतर 
योग
बाहर से भीतर को जोड़ता है
आदमी को आदमी से जोड़ता है
गहरी अनुभूति का अहसास कराता
जीवन का भास कराता
जिसने कभी ध्यान न लगाया
उसने कभी ज्ञान ज्योति न जगाया
भ्रम में जीते हैं
जंगली जीवन जीते हैं 
आदमी हो तो रहो आदमी जैसे
ध्यान कर्म से मिले ज्ञान जैसे !!!
तुम ज्ञान पर भी
बहस करते हो
क्यों तुम बुद्धिजीवी बनते हो
तुम्हारे ज्ञान में न क्रिया
जिससे बढ़ाया जा सके
अपना अनुभव
क्रमबद्ध तरीके से
तुम तो केवल अनुमान लगाना जानते हो
अनुभूति और अहसास नहीं !!!

बिका हुआ वो भी था
जो केवल हिन्दू पर लिखता था
गाली की नीयत से 
तथाकथित बुद्धिजीवी
गला काटते नहीं देखता था
अपमान करना है तो तुम्हारी नीयत पे उठेगी
हिन्दू धर्म और निखर उठेगी !!!!


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Yoga on poem



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