गॉंव और शहर Village and City Poem

Village and City P 
मैं गॉंव से हूॅं
मेरी भावनाएं
दिल की
आज भी जिंदा है
जिसे पढ़े-लिखे लोगों ने
अभी पूरी तरह से
तोड़ा नहीं है
अपने तर्कों से
बौद्धिक क्षमताओं से
बल्कि भाग गए हैं
शहरों की ओर
अपने नए विचारों के
समर्थन में
मतलबपरस्ती में
मरा हुआ दिल लेकर
बौद्धिक क्षमताओं के साथ
शहरों में 
अपने स्मार्ट पन के साथ
जीने के लिए !!!


Village and City Poem


गांव से शहर का रास्ता 
एक हो गया है 
गांव से लोग शहर जा रहे हैं 
लेकिन शहर से गांव नहीं आ रहे हैं 
न आदमी न पैसा 
बल्कि विचार आ रहा है 
धीरे-धीरे गांव 
बदल रहा है 
शहर जैसे कटकर 
एक कमरे में 
जैसे शहर के लोग 
रहते हैं 
कमरे में 
मतलब तक सीमित 
बस आते हैं वहीं लोग 
गठरी लेकर जो जाते हैं 
बनाकर मकान शहर का !!!!


मैं गांव से हूं 
सीख रहा हूं 
शहरों का जीवन 
उसके आचार विचार 
लेकिन शहर नहीं सीखता 
गांव की आदतें 
कितना महान है शहर 
और गांव असभ्य 
लोगों की नकल प्रवृत्ति से 
महसूस हुआ !!!!

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---राजकपूर राजपूत''राज''


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