जिसकी नीयत कम हो जाती है

jisaki-niyat-kam-hai- जिसकी नीयत में खोट है । वह मुखौटा लगाकर चलते हैं । जिसे यह मालूम नहीं है कि दूसरे उसके चेहरे को मुखौटे लगाएं होने के वाबजूद असली चेहरा पहचान लेते हैं । क्योंकि मुखौटों में रहने वाले लोग अपनी सुविधाओं में नीयत, इरादे प्रगट कर जाते हैं । 

jisaki-niyat-kam-hai- 

अहमियत कम हो जाती है

जिसकी नीयत कम हो जाती है
पैसे कमाने में इस कदर गिरा आदमी
इंसानियत कम हो जाती है
हर रोटी के मायने भूख से हैं
भरे पेट तो चाहत कम हो जाती है
पढ़ें लिखे लोग अक्सर हक मांगते हैं
जिससे शराफ़त कम हो जाती है
ज्यादा चालाकियॉं अच्छी नहीं होती
रिश्तों की कीमत कम हो जाती है !!

जिसकी नीयत है  


नीयत तुम चेहरे से छुपा सकते हो
मगर आंखें नीयत जाहिर कर देती है
कितनी भी होशियारी दिखाओ
मगर मतलब असलियत दिखा देती है 
आइने बदल सकते हो मगर आंखें नहीं   !!!


वक्त ऐसा करवट बदलते हैं
आदमी को आदमी परखते हैं !!


अभी न सही मगर मुखौटा उठेगा
जहां सुविधा है वहीं नीयत दिखेंगी !!!

वो फिर आ गए अपना बनकर
जिसने ठगा था मुखौटा लगाकर

छुपाएं थे इरादे चतुराई की बातों से
वो फिर आ गए बहलाने अपना बनकर

किरदार इस तरह निभाएं हम ठगे गए
चोर-चोर साथी चला गया गवाही देकर !!!

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---राजकपूर राजपूत''राज''
jisaki-niyat-kam-hai


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