मानों सबके दिल में छाले हैं
बातों में सभ्यता है मगर बनावटी है
अब सबकी चालाकियॉं निराले हैं
उसका गम था या कोई बहाना था
यूॅं नशा के वास्ते सभी दीवाने हैं
कभी खत्म नहीं होती है मुश्किले
रोज-रोज खाने और कमाने हैं
धूप में जो तपा नहीं वो क्या जाने
भाषण में क्या है जिसे तुम्हें सुनाने हैं
अब कैसी फुहड़ता आ रही है गीतों में
मैं तो गुनगुनाता हूॅं जो गीत पूराने हैं
न दिन बदला है न रात बदली है "राज"
प्यार हो दिलों में तो हर मौसम सुहाने हैं
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