बुद्धिजीवियों के प्रति Poem Towards Intellectuals

Poem Towards Intellectuals 
कब तक भटकोगे
ऐसे उद्देश्यहीन होकर
सवाल उठाते रहोगे
बुद्धिजीवी होकर
कहीं ठहरो तो जरा
अपनी बातों में
जहॉं आराम मिले तुम्हें
अपनी राहों में
एक दृष्टि का निर्माण
नहीं कर पाए कभी तुमने
सवाल ही सवाल है
जवाब नहीं दिया है तुमने
उत्तेजना है तेरे जेहन में
जिसे शांत नहीं कर पाए
कभी जीवन में !!!

Poem Towards Intellectuals


अन्वेषण
गहन स्तर पर
लेकिन मृत्यु सत्य है
जीवन पर
और तुम ढूंढते हो
जीवन के बेहतर
स्तर
इस तरह भुला दिए जाते हो
मृत्यु को
जो आ जाते हैं
चुपचाप
अकाट्य सत्य की तरह
जीवन से बेहतर !!!!

सत्य बहुत कुछ है

जैसे धरती है
आसमान है
जैसे मैं और तुम
समा जाएंगे
यही कहीं
मगर
याद आएंगे
स्थायित्व के साथ
बाकी नवजीवन को
बेहतर प्रेम के रूप में 
बुद्धिजीवियों से बेहतर !!!

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---राजकपूर राजपूत''राज''

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