मैं जब भी, जैसे भी लिखता हूॅं

मैं जब भी, जैसे भी लिखता हूॅ॑
मेरे प्यार के लिए लिखता हूॅ॑

उसकी चाहत में घायल हूॅं
इसलिए घायल ही दिखता हूॅं

मेरे भीतर तू ही समाया है
तेरे भीतर मैं ही दिखता हूॅं

नफ़रत है इस दुनिया में राज़
मैं नफ़रत के बदले प्यार लिखता हूॅ॑



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