siyasat-aur-vyaktivadi- ये सियासत भी मनोविज्ञान है । जिसे किसी के बातों से नहीं,, उसके इरादों से समझना पड़ता है । ऑंखें बंद करके भरोसा करने वाले अक्सर धोखा खा जाते हैं । बातों को समझना हो तो उसके कार्य को देखना पड़ेगा । सियासत में जितने भी झुण्ड बनते हैं, उसका उद्देश्य किसी नेक काम से ज्यादा स्वयं की हित होती है । अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए सहुलियत की राह अपनाते हैं ।एक छलावा का रूप धारण करते हैं । बातें मीठी मीठी लेकिन इरादे खतरनाक । जो आदमी को अंदर-बाहर से तोड़ते हैं ।
दुःख की बात है ,,,इसे आजकल सभी लोग अपनाते हैं । बुद्धिजीवी वर्ग से जनता के बीच में आ गई है । इस लिए तो इतनी दूरी है । मेरे और आपके बीच में,,,शंका भरे निगाह है । जिससे रिश्ते कमजोर है । अपने अपने इरादों को थोपने का प्रयास कर रहे हैं सभी लोग ,, दुर्भाग्य है,,, इसके चपेट में सभी है ।
जिसे हम आज अच्छे इंसान मानते हैं वहीं समय आने पर अपनी औकात दिखा देते हैं । एकजुटता वही दिखाई देती है जहां परस्पर स्वार्थ की पूर्ति होती दिखाई दे । अगर किसी गरीब आदमी के हितों की बात हो या फिर न्याय की बात हो तो आदमी तभी आवाज उठाएंगे जब उसे वहां अपनी हित दिखाई दे । अन्यथा आप किसी से उम्मीद नहीं कर सकते हैं ।
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सियासत जब नेताओं से उतर कर बस्ती में घुस जाती है तो बस्ती बिखर जाती है । दो वर्गों में बंट जाता है । एक कुछ सच के करीब,, दूसरा सच को बरगलाकर । समाज के आसपास अपनी महानता का प्रर्दशन करते रहते हैं । एक हितैषी के रूप में ।
सामान्य जनमानस खुद को नियंत्रित नहीं कर पाते हैं । जिसका फायदा बुद्धिजीवी वर्ग विशेष लेने की कोशिश करते हैं । खुद को छुपा कर । जन-सामान्य के नजरिए को धीरे-धीरे बदलते रहते हैं । अपने विचारों से ,, तर्को से आंदोलित करते हैं । ताकि लोगों की मानसिकता को अपने अनुकूल कर सकें ।
उनके अंदर नफ़रत के बीच इस तरह बोए जाते हैं कि वह खुद को सुरक्षित बनाए रख सके । लोगों के बीच में आदर्श बने रहे ।
सियासत में सबकुछ जायज मान लेना सर्वथा अनुचित है । ऐसा कह देने का मतलब आप स्वयं के प्रति ही जिम्मेदार है । समाज,, व्यक्तिगत जीवन से छोटा है । जो अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए छूट देती है । अनैतिक तरीकों से खुद की सफलता की प्राप्ति के लिए प्रेरित करते हैं ।
Lekh-siyasat-aur-vyaktivadi-
समाज द्वारा स्थापित नैतिकता आज व्यक्तिवादियों और राजनीतिक सोच रखने वाले के सामने तुच्छ है । हालांकि ये सच है कि इंसान अपने जीवन को जैसा चाहे वैसा जी सकता है लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि आप किसी दूसरे की हितों से टकरा कर प्राप्त करें । अनैतिक कार्यों से प्राप्त करें ।
हालांकि बनावटी महानता काबिल नज़र आते हैं ।जिसकी परख अच्छे इंसानों के लिए कठिन है । क्योंकि वह अपनी चालाकियों से सबको प्रभावित करने में माहिर होते हैं ।
इरादों में शुद्धता होगी तो हृदय में खुशी होगी । जिसे स्वार्थ बुद्धि कभी समझ नहीं पाएंगी ।
---राजकपूर राजपूत''राज''
2 टिप्पणियाँ
Bahut hi sundar leakh sir ji
जवाब देंहटाएंधन्यवाद 🙏
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