ye-chashma-utar-kar-dekho- लोग अपने ही नजरिए को प्रमाणित मान लेते हैं । जो ठीक नहीं है । ज़रूरी नहीं उसकी सोच सही हो । कुछ लोग अपने सीमित नजरिए को व्यापक मानने का भ्रम पाले बैठे हैं । जबकि उसकी सोच में नफ़रत हावी होते हैं । जिसके कारण अपने सिवा किसी अन्य को स्वीकार नहीं कर सकते हैं । ऐसे लोग दूसरों को दोष देते रहते हैं । इनकी शिकायत कभी दूर होती नहीं है ।
कविता हिन्दी में 👇
ye-chashma-utar-kar-dekho-
ये चश्मा उतार कर देखो
ये चश्मा उतार कर देखो
गलतियाॅ॑ भूलाकर देखो
मैं लौटकर आ जाऊंगा
दिल से पुकारकर देखो
मैं समझ जाऊंगा तेरी बात
अगर तुम पलटकर देखो
महकेगी ये बगिया सारी
भौरों-सा गुनगुनाकर देखो
तेरे बिना मैं कुछ नहीं
मुझे भी संवारकर देखो
मंजिल मुझे मिल जाएंगी
साथ मेरे चलकर देखो
ये नदियों की धारा कहती है
सदा आगे बढ़कर देखो
क्या है तेरे ख्यालों में
दिल की आवाज सुनकर देखो
जिंदगी हसीन लगेगी
प्यार में जीकर देखो !!!
ye-chashma-utar-kar-dekho
ये चश्मा उतार कर देखो
गलतियां सुधार कर देखो
दुनिया रंगीन है यारों
गलतफहमियां उतार कर देखो
मेरे बस चाहने से क्या होता है
तुम भी दिल में उतार कर देखो
मैं आज भी अच्छा हूं कल भी था
नफ़रत दिलोदिमाग से उतार कर देखो !!!
---राजकपूर राजपूत
1 टिप्पणियाँ
Super 👌
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