उपेक्षित किताबों की

तुम्हें जरूरत नहीं है
उन किताबों की
जो तुम्हें इंसान बनाते हैं
ऐसा नहीं 
तुम पढ़ें नहीं 
कोई किताब
जो तुम्हें इंसान बनाते हैं
तुम उन्हीं शब्दों को पढ़ें हो
जो तुम्हारी जरूरत लगें
उन्हीं शब्दों पे तुम्हारा ध्यान लगे
बाकी पर ध्यान ना लगे
जरूरत ना लगे
इसलिए गुजर गए हो
उन शब्दों से
उपेक्षित भाव से
जो तुम्हें इंसान बनाते हैं
तुम्हें लगता है
इनकी जरूरत नहीं है अब
अच्छे इंसान की 
कीमत नहीं है अब
जीवन की किताबें उपेक्षित है
---राजकपूर राजपूत''राज''

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