सोचते रहते हैं हम

सोचते रहते हैं हम 


सोचते रहते हैं हम 
ढूंढ़ते रहते हैं हम

अंतर्मन के भीतर
ख्वाब बुनते हैं हम

मन प्रबल है बहुत
व्यर्थ में दौड़ते हैं हम

कुछ मर्जी मेरी कुछ मन की
कल्पना करते हैं हम

समझते हैं जमाने को
खुद को भूल जाते हैं हम 

चले थे साथ में कुछ दूर
छोड़ दिए हाथ मगर याद करते हैं हम 

---राजकपूर राजपूत''
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