अपने इर्द गिर्द
वस्तुओं को
चाहें जीवित प्राणी हो
या निर्जीव
जिसपर नज़र
पड़ जाती है
बहुत कुछ
समझ जाती है
कुछ विचार
कुछ ख्याल
बन जाते हैं
मन रम जाते हैं
आपके प्रेम और घृणा को
आपकी दृष्टि
ले आते हैं
जिसे आपकी दृष्टि
टटोलती है
आपके भावनाओं के अनुरूप
सजाती है
दृष्टि दिमाग लगाती है
आपकी चाहत अनुसार
दृष्टि के पड़ते ही
नई सृष्टि रची जाती है
इंद्रियों को जगा देती है
स्वाद अनुसार
परोस दी जाती है
इंद्रियों के सामने
जिसे टोकने की कोशिश होती है
दिमाग की
सबके सामने
क्योंकि
आपकी दृष्टि को पढ़ने के लिए
और भी दृष्टि है सामने
जो पढ़कर
आंकलन कर सकते हैं
दुनिया को बता सकते हैं
आपके चरित्र
इसलिए दृष्टि बचते हैं
सबकी दृष्टि से
और ऑ॑खें बंद कर
मनभावन स्वाद चखते हैं
तब असल चरित्र बनते हैं
जिसे वो खुद समझते हैं
दुनिया की दृष्टि से दूर
जिसमें मन, इंद्रियां रमते हैं
बिना रोक-टोक के
आपकी दृष्टि रचते हैं
नई सृष्टि
2 टिप्पणियाँ
बहुत सुंदर सर जी
जवाब देंहटाएंNice
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