मेरी आंखों की कशिश

मेरी ऑ॑खों की कशिश
अक्सर तुम्हें देख के
ऑ॑सू बन झलक जाते हैं
एक रूआंसा-सा दिल मेरा
अक्सर फ़रियाद कर जाते हैं
तुम समझो मेरी मोहब्बत को
वर्ना तेरी नज़रों की बेरुखी से
ये दिल अक्सर टूट जाते हैं
---राजकपूर राजपूत''राज''
Reactions

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ