ख्वाब और हकीकत

तुम आओ मेरे ख्वाबों या हकीकत में हर दिन 


ख्वाब तो मैंने रात को सजाएं थे
सुबह मैंने पूरा करने की कोशिश की है

जो जीने के लिए जरूरी था
वहीं ख्वाब मैंने सजाया था

मेरे ख्वाबों में वहीं आते हैं
जो मेरे मन को भाते हैं 

ऐसा नहीं है कि ख्वाब सोई आंखों से सजाया है
जिसके प्रेम की धून में हूं उसे हर पल गाया है 

ये सच है कि मैं जी नहीं सकता तुझ बिन
तुम आओ मेरे ख्वाबों या हकीकत में हर दिन 


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