khamoshi-hi-jindgi-ka-raj-hai - आदमी खुद में इतने मशगूल होते हैं । खुद को पहचान नहीं पाते हैं । अपने इर्द गिर्द होने वाली चर्चा/परिचर्चा/घटनाओं में व्यस्त होते हैं । जिससे बाहर निकल ही नहीं पाते हैं । नजरें दुनिया पर होती है । परंतु कभी खुद को पहचान नहीं पाते हैं । कभी खुद को इन विचारों से बाहर निकालने की कोशिश ही नहीं कर पाते हैं । जबकि सभी विचारों को विराम देकर ही व्यक्ति स्वयं को पहचान पाते हैं । ख़ामोशी हो तो केवल बाहर से न हो भीतर से भी होना चाहिए ।
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ख़ामोशी
ख़ामोशी ही है
जो खुद का
परिचय कराते हैं
वरना..
लोग तो उलझे रहते हैं
दूसरो की बातों पे
मन में बातें चलती रहती है
शिकायतें चलती रहती है
कब शांत हुआ ख़बर नहीं
और खुद का हाल ख़बर नहीं
ख़ामोश रहना यह नहीं है यारो
कभी विचारों का समन दो यारों
वक्त की बात है बीत जाएगा
कब क्या होगा पता नहीं
आखिर मर जाएगा
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