ख्वाब Khwaab Adhura Poem

Khwaab Adhura Poem 
वो ख्वाब ही था
जिसके लिए जीता था
वर्ना कब के बिखर जाते
अपनी तन्हाई में
यूं ही टूट जाते
एक उम्मीद थी
जिसके लिए 
मेरे कदम चलते गए
अपनी ही धुन में
निरंतर...
अपने सफ़र में !!!

Khwaab Adhura Poem


वे ख्वाब ही थे 
जब मैं सोच ही नहीं पाया 
जिसके सिवा 
कोई दूसरा न भाया 

प्रेम से भरा रहा 
उसकी झूठी बातों से हरा रहा 
लगा जैसे वे ही सबकुछ है 
अपनी ही चाहत में 
सदा खुश रहा है 
जब टूटा दिल तो जाना 
हकीकत में 
प्रेम बहुत दूर है !!!!

हकीकत से जब सामना होगी 
ख्वाब टूटते जाएंगे 
रिश्ते छूटते जाएंगे !!!

अब तुम्हारे जीवन में 
कोई नहीं आएगा 
आएगा तो चला जाएगा 
क्योंकि प्यार तुझे मालूम नहीं !!!!

---राजकपूर राजपूत''राज''

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