Aasman धूल गया था
आसमान धूल गया था
मौसम भी खिल गया था
हरियाली में रंगत बढ़ गई थी
धरती की प्यास बुझ गई थी
जो अवसाद जम गया था
बरसों से मन के अंदर
एक ही बारिश से टूट गया था
बरस के बादल बिखर गया था
हर चेहरे निखर गया था
बरसों की आस मिट गई थी
हां ,मेरी भी प्यास बुझ गई थी
---राजकपूर राजपूत
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