सच्चा प्रेम true-love-poetry

वैसे तो प्रेम की परिभाषा कोई बता नहीं सकते हैं ।true-love-poetry मेरा प्रेम सच्चा है प्रेम में पड़ा हुआ आदमी मुख बधिर की भांति चुप रहते हैं । फिर भी कुछ पहचान है । जिससे प्यार की पहचान होती है ।   सच्चा प्रेम में जीने वाले परस्पर सहयोग, एक दूसरे की समझ, सहयोग, समर्थन करते हैं । इतनी जल्दी नाराज़ नहीं होते हैं । नाराज़ होने के बाद मान भी जाते हैं । प्रेम में अहम का कोई स्थान नहीं है ।  

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मेरा प्रेम सच्चा है
सारी दुनिया में
मैंने अक्सर तुम्हें
अकेले में याद किया है
ना जाने कितने पल
न जाने कितने दिन
तेरी याद में
ऑ॑सू बहाएं
जिसे मैं 
दिखा नहीं सकता हूॅं
समझा नहीं सकता हूॅं
क्योंकि लोग
सबूतों पर
विश्वास करते हैं
और जो सबूत मांगते हैं
वो शक करते हैं
रिश्तों के बीच में !!

दूर रहो या पास

मेरे लिए खास
जीवन अधूरा है
बिन तेरे अहसास
चला भी जाऊं कहीं
मुझे तेरी प्यास
झुक गया प्रेम के भरोसे
मुझे तुझपे विश्वास
ये मेरा पागलपन है
तुझे सिर्फ पाने की आस
अब और भला क्या मांगे 
मेरे दिल की प्यास !!!

मैं कभी उदास नहीं हुआ
लेकिन ये भी सच है
तेरे सिवा मेरा कोई नहीं हुआ
मैं भीड़ से निकल आया
मुझे कोई नहीं भाया
एक तेरी याद काफी है
खुश रहने के लिए!!!

मुझे सफ़र सबकुछ मिला
लोगों से
नफ़रत, घृणा, वैमनस्य, साजिश
धोखा, गुस्सा आदि
अत्यंत राक्षसी प्रवृत्ति के लोग मिले
किसी के सीने में
किसी के दिमाग में 
भरे पड़े थे
कूट-कूट कर 
नहीं तो बस प्रेम
शायद ! इस शब्द से लोग अपरिचित थे
सबसे पूछा अनजान थे 
कुछ जानकार थे
जो बताया
प्रेम मर चुका है
बहुत पहले
प्रगतिशील विचार आने के बाद !!! 

बीज
इधर-उधर पड़े हैं
धूल उड़े
और ढक दें
मिट्टी से
बदरिया तुम बरस जाना
नमी देकर
सूरज तुम गर्मी देकर
ताकि
अंकुरित हो सकें
हर बीज !!!!

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