हाथों में लकीरें थी मगर क़िस्मत बदलते रहे
कुछ ख़्वाब उसकी भी ऑ॑खों में पलते रहे
मिला कुछ भी नहीं मगर ख्वाब बदलते रहे
थका हुआ आदमी था धूप में ही सो गया
बना के महल दूसरों के ठिकाना बदलते रहे
जिंदगी के जद्दोजहद में वो भटकता रहा
इस मकान से उस मकान में किराए बदलते रहे
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