अवहेलना भाग ६ -
अवहेलना- "अब तुम्हें क्या हुआ ? क्यों उदास बैठी हो ? नहीं ले जा पाया इसलिए नाराज हो । अरे ! घर के लोग समझते नहीं । छोटी मोटी बातों को भी बड़ा बना देते हैं । अब शालनी को साथ में नहीं ले जाता तो वो भी नाराज़ हो जाती ।"कल्याणी के पास बैठते हुआ बोला ।
"कोई बात नहीं,,, मैं भुल गई हूं । तुम्हारा काम हुआ जिस काम से गए थे । " कल्याणी,दीपक को संतुष्ट करते हुए कहा ।
"हां, कुछ खास काम नहीं था । बस खेती बाड़ी और घर के लिए कुछ समान लाना था ।"
''गए थे तो मेरे लिए भी कुछ ले आते । ''
''अरे ! पैसा ही नहीं बचा । ''
" हां,,,'
हां,,हूं,,क्या ? सचमुच पैसा नहीं था । उसकी नाराजगी को ताड़ते हुए कहा ।
''ख़ैर , छोड़ों ! जिस चीज से प्रेम होते हैं , उसे हम पहले प्राथमिकता देते हैं । चाहे कुछ भी हो जाए,, उसे पाने की कोशिश जरूर करते हैं । ''कल्याणी ने उलाहना करते हुए कहा तो दीपक नाराज हो गए ।
"अब फिर से शुरू,,,क्या मुझे तुमसे प्रेम नहीं है ? यही कहना चाहती हो तुम । मुझे फिक्र नहीं है तुम्हारी । बस छोटा सा शौक है,, उसे भी तुम कहती हो । दिन भर नशे मेंं तो चूर नहीं रहता हूॅ॑ । "
" प्रेम का प्रर्दशन भी हो रहा है । तुम्हारी बातों से । जिसे मैं देख सकती हूं । जिससे प्रेम होता है, उसका ख्याल भी होता है । समर्थन भी । "
"तुम्हें कौन समझाए । सब कुछ है इस घर में । फिर भी तुम क्या ढूंढती हो ? किस चीज की चाहत है । मैं कुछ भी समझ नहीं पाता हूं । ऐसी ही सोचती रहोगी तो किसी दिन पगली हो जाओगी । नीरस जीवन बना लिए हो । कभी चेहरे पे ख़ुशी नहीं दिखती है । " उसकी बातों पे सवाल उठाते हुए दीपक ने कहा ।
"जब तुम ही मेरी चाहत को समझ नहीं सकते तो मैं क्या कहूं । मेरी खुशियां अटकती है । मेरे प्रेम को सहारा नहीं । मेरा विश्वास किसी पर तो टिके । मैं तुमसे ना कहूं तो और किससे कहूं ।"
"अब छोड़ो भी ये सब । जाकर मछली को पका दो । बहु नई है । कहीं बिगाड़ ना दे । कुछ मदद कर दो । वो मोटू आएगा । उसे खाने में बुलाया हूं । "
कल्याणी,दीपक को देखती रही । किस तरह बातों को काट रहा है । उसे भी लगा कि बार बार किसी बात को कहना उचित नहीं है ।
"अब वो कोई बच्ची नहीं है । शादी को साल भर से उपर होने को है । कभी कभी कुछ कामों को अकेले करने से ही सीखते हैं । जिससे जिम्मेदारी का एहसास हो ।"
"कम से कम साथ में रह जाना । नहीं तो घर वाले तो यही समझेंगे कि तुम अपने कामों से सिर्फ मतलब रखती हो । सहयोग की कोई भावना ही नहीं है । ऐसे आराम करने से अच्छा है उसके साथ ही रहो । साथ मेंं रहोगे तो बड़ी बहू की जिम्मेवारी भी निभाएंगी । "
" घर वालों की चाहत है कि आपकी भी है ।"
(अवहेलना)कल्याणी की बातों का दीपक जवाब नहीं दिया । जिससे कल्याणी को लगा कि यह तो खुद चाहता है । मैं इसके पास ना रहूं । जिससे मेरी बातों को इसे सुनना ना पड़े । घर के कामों को करता रहूं तो अपने घर वालों को यह जताने में आसानी होगी कि वह पत्नी का गुलाम नहीं है ।
कल्याणी चाहती थी । वह दीपक के साथ बैठ के कुछ बातें करें, कुछ नाराजगी दिखाएं । कुछ मन की बात करें, जिसे दीपक सुने । ताकि उसकी भावनाओं को अवलंबन मिलें । उसे एहसास हो कि इस घर में कोई है जो उसका सहारा है । शारीरिक, मानसिक और आत्मिक रूप में । लेकिन नहीं दीपक उसके मनोभावों को और तोड़ते हैं । जिसके कारण वो खुद को उपेक्षित महसूस कर जाती थी ।
शारीरिक भूख तो इन्द्रिय क्रिया है । जिसे जानवर भी इन्द्रिय के वश में प्रेरित हो कर सारी क्रियाएं कर लेते हैं । अनायास ही । इंसानों के पास तो हृदय है , दिमाग है । जो इंद्रिय आकर्षण से उपर उठकर अपने एहसासों को और बढ़ा सकते हैं । लेकिन, नहीं दीपक शराब पी कर और आक्रामकता दिखाने का प्रयास करते हैं । अपनी ही भावनाओं को अहमियत देते हैं ।
इन शराबियों को कौन समझाए , जो खुद ही अपने जीवन को नीरस कर चुके हैं । दिल के भाव इतने सूख गए हैं कि उन्हें जोश भरने के लिए शराब की जरूरत होती है । नशा चढ़ने के बाद ऐसी बातें करेंगे जैसे बहुत बड़ा दिलवाला हो । होश में कद्र नहीं , नशे में डींगे मारते हैं ।
कल्याणी गुस्से में आकर रसोईघर में आ जाती है । जहां अनिता खाना बनाने में व्यस्त थी । बड़े लगन से सब्जी को तल रही थी । एक औरत ही है जो किसी की बातों को जल्दी भुल जाते हैं । शायद , उसे अधिकार नहीं है, किसी बात पर नाराजगी दिखाने की । सदैव नैतिकता से दबी रहती है ।
विनोद और अनिता की बातें कल्याणी को अभी भी याद है । लेकिन अनिता शायद भुल चुकी है । वह फिर से अपने कामों से घर वालों को खुश करने की कोशिश कर रही थी । उसके काम करने के तरीकों से ऐसा ही लग रहा था । जिसे देख के कल्याणी के मन में फिर से सवाल उठने लगे । एक औरत की हक़ीक़त यही तो नहीं ,,,उसकी सारी जिंदगी दूसरों के निर्देशों के पालन में बीत जाते हैं, उसके ऊपर कोई निर्देशित करने वाला सदैव रहते हैं । जो एक निश्चित घेरा बना के रखते हैं। जिसमें जीना होता है एक औरत को । एक औरत को अपनी हर बातों,,, हसरतों को पुष्टि करवानी पड़ती है । मान्यता मिले तो ठीक, नहीं तो दबानी पड़ती है ।
वो सोच ही रही थी तभी उसकी सासू मां आ गई । सब्जी के लिए । पिताजी (ससुर) पिछले कुछ सालों से लकवाग्रस्त हो गए हैं । जो कम ही हलचल कर पाते हैं । पुराने घर जो मिट्टी का बना है उसी में रहते हैं । नए घर से सटे हुए । पिताजी अपने कमरे से कम ही बाहर निकलते हैं । नहाने धोने के समय थोडा बहुत हलचल कर लेते हैं । अब वह शांति से रहना चाहते हैं । ज़मीन जायदाद बनाने में सारी उम्र निकाल दी । उसी की मेहनत है जो इस घर में इतनी संपन्नता है । लेकिन बेचारा बीमार क्या हुए । कोई पूछने वाला नहीं है । सभी लोग अपने अपने में मग्न है । एक बार असाध्य बीमारी घेर ले तो फिर सभी के लिए महत्वहीन हो जाते हैं । पूछ परख करने वाले कोई नहीं होते हैं ।
सासू मां चांवल- सब्जी को लेकर चली गई । अपने पति के पास, और हमेशा कि तरह अपना खाना भी ले गई ।
तभी अनिता ने कहा "दीदी ये मोटू कौन है " ??
क्रमशः
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