मेरे प्रेम को

मेरे प्रेम को
पढ़ने के लिए
किसी भाषा की
जरूरत नहीं है
और नहीं 
इसमें कोई शब्द हैं
जिसे तुम
परिभाषित करो
प्रेम तो मौन की भाषा है
जिसे पढ़ने के लिए
प्रेमी हृदय चाहिए
जो पढ़ सकें
मेरी ऑ॑खों को
पहली नजर में
-----राजकपूर राजपूत'राज'
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