इस भीड़ में खो जाते हैं लोग
जब चाहे मन ,बदल जाते हैं लोग
इतने सस्ते है मोहब्बत की बातें
मस्ती में दिल बहलाते हैं लोग
नजरें बडे़ है खुदा के बचना जरा
टेबल के नीचें रिश्वत खाते हैं लोग
इतनी जरुरत भी क्या खाने-पीने की
कब्ज की शिकायत , बताते हैं लोग
न पहचान देख न ईमान देख
नाक-कान कटाऐं ऊंचे चलते हैं लोग
संजीदगी का आलम तो देखो जिन्दगी
शराब पी के जोश भरते हैं लोग
अकेले चलने में डर लगता हैं बहुत
भीड़ को ही पहचान बनाते हैं लोग !!!
जरूरी चीजें
घरों में सम्हाल कर रखा जाता है
जरुरत की चीजें
कुछ दिनों तक
पूर्ति होने के बाद
इधर-उधर पड़ी रह जाती हैं !!!
लोगों ने जरूरी और जरूरत को
पहचान लिया है
इन्हीं चीजों के आधार पर
रिश्ते-नाते बदलें और बनाएं जाते हैं !!!
---राजकपूर राजपूत''राज''
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