तेरे प्रेम का

Tere pram ka sahara 



लिखने के लिए
बहुत शब्द है
कहने के लिए
कई बातें..
और पढ़ने के लिए
कई लोग हैं
लेकिन मेरे मन की बात
सुनने के लिए
लोग कम है

मैं चाहूॅ॑ तो यूॅ॑ ही
अपनी बात 
रख सकता हूॅ॑
अकेले में
खुद से बातें
कर सकता हूॅ॑ 
लेकिन मेरी तनहाई 
नहींं टूटेगी
तेरे बगैर
इसी कारण
मेरा उत्साह नहीं
मुझमें उदासी
भर गई है 

मेरी बातों को
सुनने के लिए
अवलंबन चाहिए
तेरे प्यार का
विश्वास चाहिए
एक आवरण..
जिसमें घिरा रहूॅ॑
जो मेरे चिंतन में
अंतर्मन में...
छाया रहे 

जब चाहे
बातें करुॅ॑
तन्हाई में
तेरी तस्वीर
उभरे मेरे मन में
जिससे मैं
अपनी भावनाओं को
अर्पित कर सकूॅ॑
और मैं
हर पल
सहारा लें सकूॅ॑
तेरे प्रेम का
अपने जीवन भर !!!

---राजकपूर राजपूत
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