मैं किसी का मोहताज नहीं
उतार के फेंक दूंगा तु ताज नहीं
बडे़ हो फिर भी औकात में रहो
छांव नहीं तले में तु खजूर तो नहीं
रंग बदलने में इतना गुरूर न कर
अरे !चापलुस तु गिरगिट तो नहीं
भरोसा नहीं कब गिर जाओगे
समझता हूँ तुझे खुद्दार तो नहीं
तालिम लेना भी कलाकारी है
तेरे दिमाग का ब्रेनवाश तो नहीं
तुम्हें कौन समझाऐं?कैसे समझोगें?
पढे़ं-लिखें शायद बेवकुफ तो नहीं
आरोप-प्रत्यारोप का दौर है यारों
ये चेहरे सब सियासत तो नहीं
इश्क ही जिन्दगी है इश्क कर
ये "राज" सबको बताया तो नहीं
-------राजकपूर राजपूत "राज"
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