बहार यही थी Bahar yahi hai Kavita Hindi

Bahar yahi hai Kavita Hindi 
ये बहारें और नजारें
यही थे
सब सही थे
और मेरा दिल भी 
यही था
ये खुशबू,, ये हवाएं
मेरे सीने से
गुज़र रहे थे

तुम्हारे एहसासों को 
लेकर..
मेरा मन
मचल रहा था
और ये दिल
तड़प रहा था
तेरे लिए

Bahar yahi hai Kavita Hindi 

तेरी झलक
बिखर जाती थी
इन फूलों में
तेरी तस्वीर
दिखाई देती थी
इन बहारों में
कोयल गीत गाते थे
मेरे समर्थन में

उस वक्त मुझे

एहसास होता था
मेरे हर दर्द में
तू पास होता था
नहीं समझ पाया मैं
मेरा दिल क्यों..
रोया था..!

क्योंकि..
शब्दों में
नहीं बंधा है
मेरा प्रेम
कोई परिभाषित
नहीं कर सकता है
इसे....!

आज भी बहारें यही थे
केवल,, तुम ही नहीं थे !!!

तुम्हारे शब्दों के भावों को देखा
लिखावट के वर्णों को नहीं देखा
दुनिया को कुछ भी लग सकता है
जिसने तेरे मेरे प्यार को नहीं देखा
मैं दीवाना था तेरे प्यार में
पहचानें गए उदासी से मेरा ख्याल नहीं देखा !!

-----राजकपूर राजपूत "राज"
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