मैं भीड़ से निकल के अलग चलता रहा

ये धूप और कठोर जमीं पर जलता रहा
मैं भीड़ से निकल के अलग चलता रहा

सुविधा के हिसाब में वो शामिल हुए थे
बंद कमरें की तनहाई में हाथ मलता रहा

ऊॅ॑ची आवाजें आती है लाउडस्पीकरों से
अपनी पहचान को हर आदमी खोता रहा

हमेशा अपने दिल की बातें सुनों दोस्तों
वह बहरा है लोगों का परवाह कहाॅ॑ करता रहा

मैं टूट के बिखर जाऊंगा खुशी होगी सबको
ये गलतफहमी दुश्मनों के बीच मेंं पलता रहा

नफरतों की दीवारें खड़ी हैं आजकल सभी के
वो शख्स इश्क की खातिर दर-बदर भटकता रहा

____राजकपूर राजपूत '"राज'"
Reactions

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ