इश्क में बचें नहीं हम किसी काम के
बैठने-उठने में ये दुनिया छोटी पड़ी है
शक भरें निगाह उठते हैं तेरे नाम के
समझाते है लोग मुझे आ-आकर के
दिल की दुनियां नहीं है अब दिमाग के
कहते हैं इश्क में डूबे वो बच गए है
अपनी तो जिंदगी है उसके नाम के
थके थके चलते हैं आजकल सभी
इश्क बिना ये होशियारी किस काम के
_____राजकपूर राजपूत "'राज'"
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