पलकों में सजे ख्वाब

घर में टीवी नहीं था। गुड़िया अक्सर दूसरों के घरों मेंं टीवी देखने चली जाती थी । जिससे घर सुना सुना- सा लगता था। रूपेश और उसकी पत्नी(कुमुदिनी) को घर में खालीपन महसूस होते थे । आखिर बच्चें को कह भी तो नहीं सकते थे । उसकी उम्र है अभी खेलने कुदने की । घर में टीवी होता तो समय-समय पर देखने देती । दूसरों के घर दिनभर टीवी देखने भाग जाती है । 
जब धुंधली रौशनी हो जाती तब कुमुदिनी उसे लाने जाती । पढ़ने का समय हो गया । अब बस भी करो । दिन रात देखोगी । जिसे सुन के गुड़िया दौड़ी चली आती । घर में आते ही सहज ही प्रश्न कर जाती कि हम लोग कब टीवी खरीदेंगे ,माॅ॑ !! जिसे सुन के कुमुदिनी कुछ भी नहीं कह पाती थी । 
एक दिन कुमुदिनी ,रुपेश से बोली :- "अब हमें भी टीवी खरीद लेना चाहिए । गुड़िया रोज -रोज दूसरों के घरों में चली जाती है । मुहल्ले में सभी के घरों में टीवी है । सिवाय हमारे ।"
"तुम्हें नहीं पता, बच्चें टीवी देख के बिगड़ जाते हैं । "
"आखिर दूसरों के घरों में देखने तो जाती है और दूसरों के बच्चें तो नहीं बिगड़ रहे हैं । "
"तो क्या करूं । इतने आवाक तो नहीं है कि खरीद लूॅ॑ । ले देके कर्ज को सर से उतारा है ।अब फिर.! "
रूपेश के जवाब सुन कुमुदिनी चुप हो गई । सच ही तो कह रहे हैं । गरीब आदमी अपने शौक भी नहीं रख सकते हैं । कमाने वाले हम-दोनों बस तो है ।घर में बुढ़ी माॅ॑-पिताजी है। जिसकी दवा दारू के खर्च में भी पैसे अधिक लगते है । जमीन भी पर्याप्त नहीं है । मुश्किल से साल गुजरते हैं । बीच-बीच में गांव में ही मजदूरी करने पड़ते हैं । तब हफ़्ते का गुजर होता है । सब कितने अच्छे कपड़े लत्ते पहनते हैं । हमारी हालात न जाने कैसे सुधरेगी । कुमुदिनी सोचती और खुद को ही समझाती ।

दिन गुजर रहे थे ।और उन लोगों की हालात जस के तस थी । एक दिन रूपेश ने अचानक कहा कि वह भी कुछ दिनों के लिए परदेश जाएगा । घर में सभी लोग अचंभित हो गए । माॅ॑-पिताजी और कुमुदिनी समझाने लगे। घर का क्या होगा ?  फिर भी नहीं मानें । पत्नी को समझाने लगे-
" बस कुछ महीनों की  तो बात है । हर शौक के लिए तरसते हैं । कुछ तो पूरा हो जाएगा । गुड़िया के लिए टीवी, तुम्हारे लिए पायल ,माॅ॑ -पिताजी के लिए गर्म कपड़े और भी जरूरतें है "!

"रहने दें । मुझे नहीं चाहिए । और गुड़िया कौन से रोज कहती हैं । उसे समझा दूंगी । "कुमुदिनी ने कहा । 

फिर भी नहीं मानें और एक साथी(गोरे लाल) के साथ शहर आ गया । 
उसके साथी शहर में ही ज्यादा रहते थे । जहाॅ॑ वो रहते थे,वहाॅ॑ उसकी पहचान अच्छी थी । उसने एक कमरा किराए पर दिला दिया । एक फैक्टरी में उसी की वजह से काम भी मिल गया। जहाॅ॑ के लेबर अभी गांव चले गए थे । कुछ दिनों के लिए ।
रूपेश को काम अच्छा लगा ।वो बहुत खुश था कि आते ही काम मिल गया । 
मुश्किल से महीना, डेढ़ महीना गुजरा होगा और उसके पूराने लेबर आ गए । उसके मेहनत को देख सुपरवाइजर उसे निकालना नहीं चाहता था । लेकिन किसी से सुन लिया था कि वह दो चार महीनों के लिए ही आया है । जबकि उसके आदमी तो हमेशा यही काम करते हैं ।  इसलिए रूपेश को काम से निकाल दिया ।

रूपेश को कोई बूरा नहीं लगा । उसे तो पता भी नहीं था कि परदेश में एक दिन भी बिना काम किए  बैठना कितना भारी  पड़ता है ।उसे अपने गांव के साथी पर बहुत भरोसा था कि वह उसे आसानी से काम दिला देगा । 
दूसरे दिन सोचा कि आज आराम करूंगा । पैसों को गिनें .. कितना है--पूरे सात हजार । उसे बहुत लगता, महीने भर  का और काम मिल जाते तो उसके सोचें सपने कुछ पूरा हो जाते । 
आखिर दूसरे दिन अपने साथी गोरे  के पास काम का  पता लगाने  गया । उसका काम अच्छे से चल रहा था । वह कभी भी अपने कामों से छुट्टी नहीं लेते थे । उस दिन भी वह काम के लिए जाने ही वाला था । तभी रूपेश पहुंच गया । उसके किराया घर में सभी जरूरतों के समान था । रहना भी चाहिए । उसके पूरे परिवार जो यही था । रूपेश ने जब काम के बारे में बताया तो वह कहने लगे-" कल ही बता देते तो मेरे ही फैक्ट्री में काम मिल जाता ।अब भर्ती कर लिया । शहरों में अवसर चुके, क़िस्मत फुटे समझो । यहाॅ॑ कोई किसी का इंतजार नहीं करते हैं । "
फिर  उसने समझाया -"कोई बात नहींं, कही और मिल जाएगा । तब तक मैं भी पता लगाउंगा । तुम भी कहीं पता लगाते रहना । "
रूपेश चाय-पानी पीके घर आ गया और सोचने लगा कि काम कहाॅ॑  ढूॅ॑ढ़ा जाय । यहाॅ॑ बिना पहचान के कोई काम भी तो नहीं देते हैं । बस गोरे भाई पर ही भरोसा  है । उसने थोड़ा बहुत काम की तलाश किया। फिर शहर घुमने निकल पड़े । 
देखते ही देखते दस दिन हो गए । उसे काम ही ढंग का नहीं मिलें । इन दस दिनों में दो चार फैक्ट्रियों में काम भी किए । लेकिन पसंद नहीं आया ।बीच में ही छोड़ दिया था। जिससे उसका पैसा भी मिल नहीं पाएं । कैसे मांगने जाते, काम जो बीच में ही छोड़ दिया था । 
 
शहरों में एक दिन खाली बैठना कितना अखरता है, उसे उस समय याद आया जब अपने पास रखें पैसों की गिनती किए । सात हजार से पांच हजार हो गए थे । वह परेशान हो गया । आखिर पैसा गया कहाॅ॑ .! कही गुम गया क्या वह सोचता..! सोचते-सोचते भय खा जाता  । घर कैसे जाउंगा ? बीबी बच्चों से क्या कहुंगा ? यही कि काम नहीं चला । गुड़िया के ख्वाब, कुमुदिनी की पायल और माॅ॑-बाप के लिए किए वादे.. कुछ भी तो पूरा नहीं कर पाऊंगा । नहीं मुझे काम करना चाहिए । मन ही मन संकल्प लिया और गोरे के घर की ओर निकल पड़ा ।
  
गोरे ने उसे बहुत समझाया कि शहरों में एक दिन बैठना मतलब दो दिनों के दिहाड़ी का नुक़सान करना है । जो जमा पैसा है उसी में से निकलता है । कोई भी काम मिलता है , उसे करों ! आखिर तुम्हें दो-चार महीने ही तो रहना है । मजदूर कहीं भी काम करें ‌।नीला,पीला, धुऑ॑,धुल तो खाने ही पड़ते हैं । मैं एक दिन भी छुट्टी नहीं कर सकता । मेरा परिवार मेरे कामों पर ही निर्भर है ।"
रूपेश चुपचाप सुन रहे थे । उसने गलती की जो काम मिला था उसे नहीं किया ।
 
ठीक ही तो कहते हैं। मेरे लिए कोई अपना समय बरबाद करेंगे । सबका परिवार है । उसे भी तो देखना है । मन ही मन सोचें और घर की ओर निकल पड़े । 

 शहरों में बैठ के रहना नहीं चाहिेए ।  कुछ काम करोगे तो पैसा बढ़ेगा, नहीं किए तो खाली । काश ! भगवान मुझे किसी का गुमा पैसा दिला देते । फिर सोचते-  नहींं.., गुमा हुआ पैसा भी किसी का तो होगा । कितने गंदी सोच है मेरी ।  
सोचते-सोचते घर की ओर आ रहे थे और उसे रास्ते मेंं  सचमुच पांच सौ के नोट पड़े मिल गए । उसने तुरंत उठा लिया । इधर उधर देखें, पास में कोई नहीं था ।गली सुनसान था । हाॅ॑ , दूर एक शराबी जरुर लहराते हुए जा रहे थे । शायद ,उसी का होगा । कुछ ही दूरी पर और कुछ पैसे मिले । वह बहुत खुश हो गया । भगवान ने उसकी बात रख ली। चेहरा खिल उठा ।जो छुट्टी किए हैं उसे पूरा कर दिया। पूरे पंद्रह सौ रुपए हो गए । 

 तभी उसे एक महिला आते हुए दिखाई दिया । वह दौड़ रही थी , शराबी की ओर ।  वह ठिठक गया । कही उसने पैसे उठाते देखी तो नहीं । सीधी रास्ते चलने लगा । ताकि शक ना हो । बेचारा अपनी परिस्थितियों से लाचार हो गए थे । 
महिला शराबी के पास जाते ही खींचना और घसीटना शुरू कर दिया । शराबी केवल बक रहे थे ।
"खुद तो कमाते नहीं और मेरा पैसा भी उड़ाने जा रहे हो । " उसके जेब को टटोलें । फिर चिल्लाई और रोई । शरीबी शराब के नशें में कुछ भी नहीं कर पा रहा था। उसके खुद को सम्भालने की औकात नहीं थी ।  
"बाकी पैसा कहाॅ॑ ..! गिरा दिया । "बाल को खिंचने लगा । उसे पास में ही सौ दो सौ रुपए मिले । समझ गई । पैसा गिरा चुके हैं । तभी रूपेश की ओर उसका ध्यान गया । गौर से देखी । ये आदमी यहाॅ॑ तमाशा क्यों देख रहा है । वो शायद सोच रही थी । इसी को कही पैसा तो नहीं मिलें हैं । तभी उसकी छोटी सी गुड़िया रोते हुए आई । चिथड़े कपड़े में । मासुम सी ।
"अब तु भी आजा । मुझे खा लो बाप बेटी । "उसकी बातों से गुस्सा साफ झलक रही थी ।  
उसकी गुड़िया को देखकर रूपेश का हृदय पसीज गया। फूल सी बच्ची थी । बाप शराबी । जाने कैसे इनके दिन गुजरेंते होंगे !  मेरी भी गुड़िया है इसके बराबर होगी‌ । उसे देख के अपनी बच्ची को याद कर रहा था । मैंने भी तो अपने बच्ची के लिए कुछ नहीं किया है । उसकी कब से चाहत है कि घर में टीवी हो । और मैं यहाॅ॑ आके..! 

महिला को पक्का लगने लगा कि इसी आदमी ने पैसा रखा है लेकिन कह ना सकी । उसकी ऑ॑खें कह रही थी । शंका साफ झलक रही थी । कुछ देर बाद महिला रोने लगी उसकी मेहनत की कमाई पानी में मिल गई थी । जिंदगी को चलाने में कितनी मेहनत लगती है उसके पति को नहीं पता । रुपेश को यह सब अच्छा नहीं लग रहा था। किसी की खुशियों को लुट के अपनी खुशियां खरीदना । उसके जमीर गवाही नहीं दे रहा था ।
 उसने पैसा देते हुए कहा :- "लो, बहन। आपके पैसे । यहाॅ॑ कोई नहीं था । आपके पति की हालत भी ठीक नहीं था । जिसे देना उचित नहीं समझा । "
उसके चेहरे पर कोई मुस्कान नहीं आई, फिर भी उसने कहा  "कोई बात नहीं । आपके जगह कोई दूसरा होता तो वो भी यही करता । आपने तो हमारी तकलीफ़ को समझें ।"
उसने दोनों हाथ जोड़ के विनती की । ढेरों दुआएं दी ।
उसकी ऑ॑खों मेंं कुछ खुशी चमकी लेकिन पूरी तरह से नहीं । क्योंकि उसे ऐसी हालातों में रहने की आदत थी ।  और अपनी गुड़िया को लेकर घर की ओर निकल गई ।
शराबी वही पर पड़ा रहा । न जाने कब तक ।

घर में आ के रूपेश सोचने लगा कि कल से कैसे भी करके काम का पता लगाउंगा । केवल सपने देखने से क्या होता है । उसे पूरा भी करूंगा । चाहें जो भी काम हो ।  रात को उसे नींद नहीं आ रही थी । सोचते-सोचते कब ऑ॑ख लगी उसे पता नहीं चला ।
       आखिर उसकी कोशिश रंग लाई । दूसरे दिन ही एक फैक्टरी में काम मिल गया । ज्यादा मेहनत नहीं थी । बस भट्टी में कोयला डालना था । रात ड्यूटी करने पर ज्यादा रोजी, दिन में कम था । उसने रात को ही चुना । 
जब काम पर गए तो पता चला कि यहाॅ॑ ओवर टाइम जितना कर लो । वह खुश हो गया । मेरी गलती को पूरा कर लूंगा । 
ओवर टाइम कमाने लगे । उसे अपने सपनों को पूरा करना था । गुड़िया और घर परिवार  की बहुत याद आते थे । उसके बारे में सोचते ही उसके शरीर में अद्भुत ताकत का संचार हो जाता । उसकी ऑ॑खों में सपना था । जिसे पूरा करने की धुन सवार था। उसने लगातार चौबीस घंटे करने के बाद फिर से काम में लग गए । उसके मेहनत को देख चौकीदार कहता कि इतना तपस्या किसलिए करते हो । तबीयत खराब हो जाएगा। रूपेश कुछ नहीं कहते थे । चुपचाप काम करता रहा । अड़तालिस घंटे के बाद फिर से काम में लग गए । उसकी ऑ॑खों में नींद नहीं थी । क्योंकि उसमें तो अपनों के सपने थे । नींद कहाॅ॑ से आएगी । उसके पास समय कम था , सपने बड़े । बहत्तर घंटे लगातार काम कर चुके थे ।  फिर भी काम करूंगा कहके घर आ गया।  
घर आके खाना बनाया । खाना खाते खाते सोचने लगा कि शौक पूरा होने के बाद बचें पैसा बरसात के दिनों में खेती के काम आ जाएगा । 
जैसे ही खाना खा के उठा उसकी ऑ॑खें बंद होने लगा । खोलने की कोशिश करता लेकिन खोल नहीं पाते थे । ये क्या हो रहा है । ऑ॑खों के सामने अंधेरा छाने लगा । दीवाल के सहारे जाकर अपने कमरे के दरवाजे की कुण्डी लगाई और वहीं पर बेसुध हो सो गया । जो रात के भिनसार में उसकी ऑ॑खें खुली । 
दूसरे दिन जब काम में गए तो सुपरवाइजर मुस्कुरा रहे थे । और कहा -: "हमें पता था कि तुम काम पर नहीं आ सकते ।  इतना भी मत कमाओं कि शरीर ही बिगड़ जाए ।"
रूपेश चुप ही रहा , कुछ नहीं बोले और काम पर लग गया । 
कामों में इतने खुश था कि कब दो महीने गुजरा पता नहीं चला । गांव जाने का समय आ गया । उसने शहर जाके अपने जरुरतों को खरीद लाया । वह बहुत खुश था । अपने गुड़िया के कपड़े को निकाल के देखते।खुब जचेगी । खुद से बातें करते । गांव जाने की खुशी में नींद नहीं आ रहे थे ।
सुबह की गाड़ी में अपने गांव की ओर निकल गए ।
घर आने की खबर पहले ही दे चुके थे ।सब राह देख रहे थे । घर पहुंचते ही गुड़िया आ के लिपट गई । एक एक समान को खुशी से देख रही थी ।
माॅ॑-पिताजी और कुमुदिनी के नजरों में वो दुबले हो गए थे । लेकिन रूपेश को कहाॅ॑ परवाह था । वे तो अपने सारे दुःख भुल चुके थे। सभी को खुशियां देकर खुश था।

____ राजकपूर राजपूत''राज''
पलकों में सजे ख्वाब




 



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