एक किसान a farmer story in hindi

घर के आंगन में माघीलाल खाट बिछा के लेटा था । a farmer story in hindi  शाम होने वाली थी। दिनभर के थके हुए थे । थोड़ा सा आराम कर रहा था। पास ही में उसका लड़का गोलू खेल रहा था । ‌"गोलू जरा पीठ तो खुजला दे । चूभ रहा है ,बेटा !माघीलाल ने कहा ।  और गोलू खेल बंद करके अपने पिता जी के खाट पर आ के बैठ गया और पीठ खुजलाने लगा । गोलू दस साल का होगा । पढ़ने लिखने में बड़ा होशियार लडका था । वह बहुत ही जिज्ञासु प्रवृत्ति के थे । पीठ खुजला रहे थे कि अपने पिता जी से ही सवाल करने लगे।
"पिता जी, ये आपके शरीर का रंग सफेद और काला क्यों है । " a farmer story in hindi 
"बेटा सर्दी गर्मी में काम करते हैं । जिससे शरीर जल गया है । जो हिस्सा कपड़ों से ढका रहता है । वो सफ़ेद रंग है । जो खुला रह जाता है । वह काला पड़ जाता है । "
"इतने धूप में काम ही क्यों करते हो?"
"काम नहीं करेंगे तो खाने के लिए पैसा कौन देगा..?"
सुन के गोलू चुप हो गए । कुछ समय खुजलाएं फिर अपने खेल में लग गए । 

लेकिन माघीलाल के चेहरे पर चिंता की लकीरें उभर आई ।बस मेहनत ही तो करना हम जानते हैं । हमारे मेहनत का फल देना ऊपर वाले के हाथों में है । बस फसल पकने ही वाली है । एक पानी की जरूरत है, उसके खेतों को । आधा-एक घंटा बदरा बरस देते तो उसकी चिंता दूर हो जाती । 
सोच ही रहे थे कि अचानक बादलों के गड़गड़ाहट सुनाई दी । माघीलाल झट से खाट से उठ बैठा और ऊपर आसमान की ओर ताकने लगे ‌। बादलों के आवाजाही, उसके घिरना देख अनुमान लगाने लगे । यदि वह बादल का टुकड़ा इघर आ जाते तो पानी बरस पड़ते, लेकिन मुश्किल है क्योंकि हवा की गति विपरीत है । सारे घटाओं को उडा के दूर ले जाएगा और उसके चेहरे पर फिर चिंता की लकीरें उभर आई । 
तभी मालती (पत्नी) ने आवाज लगाई:-
"घर में एक भी माचिस की डिब्बी नहीं है।जाओं ना दुकान से खरीद लाओं । "
माघीलाल दुकान चलें गए ।
कुछ देर बाद सचमुच पानी गिरने लगा । जो उसके अनुमान से उल्टा था । ऊपर वाले की मर्जी.. । वो चाहे तो कुछ भी हो सकता है । दोनों पति-पत्नी के चेहरे खिल उठे।
 "धान की फसल अच्छी हो जाने पर गोलू के लिए कपड़े खरीद देना । " मालती बोली।
"हाॅ॑.हाॅ॑ ,पहले फसल तो कटने दो ! और तुम्हारे लिए ।"
"मेरे पास भी कहाॅ॑ कोई ढंग की साड़ी नहीं है । कोई गांव जाओं तब अच्छा नहीं लगता है । तुम्हारे डर से कह नहीं रही थी ।"मालती शर्माती हुई कही ।
"ठीक है भगवान. ! इसी समय तो फसलों में बिमारियां आती है । उससे बच गए तो जरूर लाएंगे।"
"फिर भी अब कुछ तो भरोसा हो गए हैं। ऊपर वाले की मर्जी रही तो सब ठीक ही होगा। मेरे लिए नहीं तो गोलू के लिए जरूर खरीदना। उसके पास तो बिल्कुल ही नहीं है। "
माघीलाल, मालती के बातों को समझ रहा था। वह जो बोल रही थी।उसकी ममता थी। बच्चें के प्रति । उसके पास भी तो ढंग की साड़ी नहीं है।  ‌
धान की फसल तो उम्मीद के मुताबिक ही हुई थी। कीड़ों-मकोडों के प्रकोप से नुकसान नहीं हुआ । कुछ दिन फसल घर में रखने के बाद माघीलाल उसे मंडी ले जाने की तैयारी करने लगा । कुछ धान खाने के लिए रखें । बाकी को गांव के ही पिकअप (वैन) में लोड़ करवाया । मंडी गांव से तीस किलोमीटर दूर है । गाड़ी को देखकर गोलु जिंद करने लगा कि मैं भी जाउंगा ।माघीलाल मना कर रहे थे ‌। जिसे देखकर मालती ने कहा:-"ले जाओं ना, गाड़ी में ही तो बैठ के जाना है। वापसी में भी बस से ही तो आओगे । "
माघीलाल भी तैयार हो गया । "चलों ! भूख लगेगी तो मत रोना।वहाॅ॑ बहुत देर में खाना मिलता है।"
गोलू कुछ ना कहा । साथ में चलें गए । 

मंडी में धान की ढेरियां ही ढेरियां थी । व्यापारी आते फसल को देखते और बोली लगाते हुए चलें जाते । व्यापारियों के हिसाब से फसल की कीमत तय होती है। किसान चुपचाप देखते हैं । अपने ही मेहनत का दाम लगा नहीं सकते हैं। कितना असहाय होते हैं, किसान।सभी की फसलों की बोली लग गए। लेकिन माघीलाल की फसल का रंग अच्छा नहीं था। इसलिए अभी कोई खरीददार नहीं आया था। फिर भी कुछ देर बाद  औने पौने दामों से बिक गए । पैसे भी मिल गए । कुछ खरीदारी भी करना है और उस शहर के बाजार की ओर आ गए । गोलू को नास्ता करवाया और कपड़े की दुकान पर जाकर कपड़ा दिखाने के लिए कहा।
"ये रंग कैसा रहेगा गोलू.?"
"अच्छा है।"
माघीलाल जब कीमत पूछा तो मूॅ॑ह उतर गया। 
"बहुत ज्यादा है !कम नहीं होगा।"
"एक दाम है । इससे सस्ता आपको कहीं नहीं मिलेगा । " दुकानदार ने कहा ।
लेकिन माघीलाल के लिए बहुत महंगा था।वह चुपचाप दुकान से निकल गया । 

इस दुकान से उस दुकान घुमकर कीमत पूछता । तब गोलू ने कहा :- "पिताजी, हम लोग कोई भी समान को अपने कीमत पर क्यों नहीं खरीद सकते हैं। जबकि हमारे धान को तो वो लोग (मंडी वाले) खुद ही कीमत लगाएं थे । जिसे आपने चुपचाप दे दिया था । कुछ भी अपने हिसाब से भाव नहीं रखें । "
वहाॅ॑ का नियम अलग है बेटा ! यहाॅ॑ का अलग है ।"
ये नियम अलग-अलग क्यों है ।"
जिसे सुनकर माघीलाल कुछ नहीं कह सका। चुप हो गए ।बस इतना ही कहा कि बड़े होकर सब समझ जाओगे । लेकिन खुद से ही पूछने लगे हम लोग किसी चीज़ की कीमत क्यों नहीं लगा सकते हैं..? किंतु सवाल का जवाब नहीं ढूंढ़ पाया । 

आखिरकार एक दुकान में उसे सस्ता कपड़ा मिल ही गया । कपड़ा भी अच्छा था । गोलू भी खुश हुए ।उसी ने पसंद किया था । मालती के लिए साड़ी खरीदी और घर के लिए निकल पड़े।
जब घर पहुंचे तो गोलू अपने नए कपड़े को पहन कर अपनी माॅ॑ को दिखाते और पूछते " अच्छा है ना माॅ॑ !"
"हाॅ॑, बेटा ! खुब जच रहा है तुम्हें !"
मालती भी अपनी साड़ी को निकाल के देखने लगी। वह भी खुश थी । 
जिसे देखकर माघीलाल भी बहुत खुश था । तभी मालती ने उससे पूछा "अपने लिए भी लाएं हो ना ।"
"नहीं मेरे पास तो अभी है । कुछ कर्ज है उसे भी तो चुकाना है ,जब पैसा बच जायेगा तब खरीदेंगे।"उसने कहा।

 मालती चुप हो गई और  सोचने लगी कि एक किसान के जीवन में खुशियां ज्यादा ठहरती नहीं । माघीलाल से कर्ज के बारे में पूछने लगी। कर्ज की चिंता में कब अपनी साड़ी बगल में रखी , उसे ख़बर नहीं रही। खुशियां गायब हो गई थी । 


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