शायद

       शायद 
तुमने आवाज दी होती
तो मेरे कदम 
रुक गए होते
और मैं ख्वाबों को 
सजाना शुरू कर देता
तुम्हें देखकर 
मेरी सांसे ठहर गई होती
और मैं निखर जाता
इस बंजर जमीन पर
खिल जाती
फूल बनकर
बिखर गए होते
खुशबू बनकर
तेरे आसपास
और तेरे सांसों में
समा जाती
धड़कन बनकर
जीवन भर के लिए
 तब मेरे जीवन को
नई परिभाषाएं
मिल जाती
  शायद

_ राजकपूर राजपूत"राज़'"





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