इस दीवाली द्वार-द्वार....


इस दीवाली द्वार-द्वार में दीए जले हैं
दूरियां मिटे और जी भर गले मिले हैं

मिट्टी के दीए जिसमें तेल और बाती हैं
जल गए इसी चाह में सबको रौशनी मिले हैं

बड़ें बेताब से उठते थे उसके कदम आगे-आगे
खुशियां मिले थे जिसे बुढ़े बरगद के तले हैं

गए थे जो परदेश अपनों से बहुत दूर
वो आंखें देखो बुढ़े मां-बाप से मिले हैं

ढूंढ रही थी उसकी नजरें हर गलियों में 
बचपन के दोस्तों की यादें जहां-जहां मिले हैं

सहला रहे थे छू-छूकर वो कैसी हिलोर थी!!
खेत-नदी-तालाब-पेड़, सभी दिल से मिले हैं

बदल गए है कुछ नज़ारे वक्त के साथ-साथ
रह गई है यादें 'राज़' जिसके सीने में दर्द मिले हैं


__राजकपूर राजपूत 'राज'
    बेमेतरा, छत्तीसगढ़
इस दीवाली द्वार - द्वार




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