हुई सुबह और निकल गई थी
एक-एक दाना
चुगते और ढूंढ रही थी
नहीं जिसे कोई दुनिया की चिंता
जो अपने खुशियों में जीता
लेकर दाना अपने चोंच में
जो लोट आई अपने घोंसले में
एक-एक दाना जो
अपने बच्चों को खिला रही थी
वह चिड़िया जो
हुई सुबह और निकल गई थी
पंख फड़फड़ाते
अपने बच्चों को जो देख मुस्कुराते
जिसकी नादानी में खुशियां मनातें
बच्चों की चीं- चीं अद्भुत अहसास दिलाते
अपने मधुर स्नेह
जिस पर बरसा रही थी
वह चिड़िया जो
हुई सुबह और निकल गई थी
जिसे कल की फ़िक्र नहीं
किसी से शिकायत नहीं
जो अपने आज पर
खुशियां मना रही थी
बेशक अपने कल के लिए
प्रभु से दुआ मांग रही थी
वह चिड़िया जो
हुई सुबह और निकल गई थी
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