भीड़ में एक चेहरा -कहानी A Face in the Crowd - Story
बस में सवार यात्री रायपुर जा रहे थे। भीतर इतनी भीड़ थी कि साँस लेना भी मुश्किल हो रहा था। जितनी सीटें थीं, उनसे कई गुना अधिक लोग खड़े होकर सफर कर रहे थे। गर्मी से पसीना टपक रहा था, ऊपर से कंडक्टर लगातार नए यात्रियों को चढ़ाता जा रहा था। यह देखकर गोकुल झुंझला उठा।
“कंडक्टर को टिकट काटने में बड़ी परेशानी होगी,सर पर पैर रखकर टिकट काटेंगे । ” उसने कहा।
“अरे नहीं, उसे तो आदत है,” दीनू ने मुस्कराते हुए जवाब दिया। “हाँ, हमें बस में चढ़ने-उतरने में जरूर मुश्किल होगी।”
A Face in the Crowd - Story
गोकुल और उसके साथी किसी तरह सीट पा चुके थे। उन्हीं के बीच एक व्यक्ति बैठा था — सुरेश, जो गाँव का छोटा-मोटा नेता माना जाता था। पाँच बरस से वह इस धंधे में पैर जमाए हुए था। अच्छे-अच्छे लोगों से उसकी पहचान थी; जिसके कारण दूसरों के अटके हुए काम उसकी एक सिफ़ारिश या जाने पर पूरे हो जाते थे।
बदले में वह अपनी जेब गर्म कर लेता था। यह सब गाँव के लोग जानते थे कि सुरेश अब सीधा-सादा नहीं रहा, दलाली उसके काम का हिस्सा बन गई है।वह इसी मौके की ताक पर रहता था । फिर भी, अजीब बात थी कि उसका रुतबा कम नहीं हुआ था। चौपाल पर आज भी लोग उसे “सुरेश जी” कहकर बुलाते थे, और उसकी बातों में वैसी ही चमक थी जैसी किसी बड़े नेता की होती है।
“असल में मैं बस से सफर नहीं करता,” उसने बातों के बीच कहा, “आज मोटरसाइकिल खराब हो गई, इसलिए मजबूरन बस पकड़नी पड़ी।” ।
दीनू हँसते हुए बोला, “आजकल इतनी गाड़ियाँ हो गई हैं, फिर भी जब कभी अचानक सफर करना पड़े, तो बसों में भीड़ से जगह मिलना मुश्किल हो जाता है।”
कंडक्टर भीड़ को धकेलता, सँभालता आगे-पीछे बढ़ रहा था। उसके मुँह से बार-बार एक ही आवाज़ निकल रही थी — “टिकट, टिकट! सब लोग टिकट ले लो!” वह थकान के बावजूद हर यात्री तक पहुँचने की कोशिश कर रहा था। लेकिन इस अफरा-तफरी में कुछ लोग ऐसे भी थे जिनसे वह पैसे तो ले लेता, पर टिकट देना भूल जाता — या शायद जानबूझकर नहीं देता था।
"जिसे देखकर सुरेश ने कहा - कन्डेक्टर फंसेगा, तुम लोग देख लेना । ये अभी नया- नया है । "
"क्यों? और कैसे ? "गोकुल ने कहा ।
"आगे-आगे देखना ।"
सभी साथी चुप हो गए ।
टिकट काटते समय सवारियों में से एक यात्री ने पैसा देने के बाद जब टिकट माँगा, तो कंडक्टर ने कहा –
"चुपचाप बैठे रहो, मैं कुछ नहीं बोलूँगा।"
यह सुनकर यात्री चुप हो गया, मानो कह रहा हो – "तुम जानो। कुछ बात आएगी, मैं तुम्हें ही कहूंगा । "
बस की भीड़, गर्म हवा और यात्रियों की बेचैनी के बीच उसकी सीटी की तीखी आवाज़ बस में गूंज रही थी, जैसे उस अव्यवस्था में व्यवस्था का एकमात्र संकेत वही हो।
बस अपनी रफ्तार से धूल उड़ाती आगे बढ़ती जा रही थी, और सब अपने-अपने विचारों में डूबे सफर का बोझ झेल रहे थे।
अचानक दनदनाते हुए एक आदमी बस पर चढ़ आया। उसकी चाल और चेहरे के भाव से ही लग रहा था कि वह किसी अधिकारपूर्ण पद पर है। बस में सवार सभी यात्री उसकी ओर देखने लगे। उसने तेजी से सवारियों पर नज़र दौड़ाई, गिनती की और टिकट बुक कंडक्टर से माँगी। उसके हाव-भाव से अंदाज़ा लगाना कठिन नहीं था कि वह कोई आम व्यक्ति नहीं, बल्कि चेकर है — जाँच करने वाला — जिसे बस मालिक ने इसी काम के लिए नियुक्त किया था।
कंडक्टर थोड़ा सहम गया। चेकर ने टिकटों को देखा, फिर गुस्से में बोला,
“ये क्या है? सवारियाँ ज़्यादा हैं और टिकट कम काटे गए हैं! तुम्हें शर्म नहीं आती? अभी से बेमानी..हफ्ताभर हुआ इस काम को पकड़े और रंग दिखा दिया । ”
उसकी ऊँची आवाज़ सुनकर बस में सन्नाटा छा गया। कुछ यात्री एक-दूसरे का मुँह देखने लगे। चेकर ने सवारियों से टिकट माँगने शुरू किए। उसने हर टिकट को ध्यान से देखा, गिना और फिर चिल्लाया —
“हे भगवान! तुम इस बस मालिक को बर्बाद कर दोगे। बस रोको!”
ड्राइवर ने तुरंत बस रोक दी। चेकर कंडक्टर की ओर घूरते हुए बोला,
“तुम्हें नौकरी नहीं करनी है! आज से बस पर मत चढ़ना! ##!”
उसने गालियाँ दीं और गुस्से में बस से नीचे उतर गया। कंडक्टर सिर झुकाए, शर्म और भय से काँपता हुआ, उसके पीछे बस से उतर गया।
कुछ देर तक बस में सन्नाटा पसरा रहा। सवारियाँ आपस में धीमे स्वर में बातें करने लगीं — कोई चेकर की कठोरता पर टिप्पणी कर रहा था, तो कोई कंडक्टर की लापरवाही पर।
तभी सुरेश ने कहा — “देखा, मैंने कहा था न कि यह आदमी फँसेगा! अब देख लो — ऊपरी कमाई करने के चक्कर में पड़ा है। यह गँवार नहीं जानता कि ऊँट की चोरी निहरे-निहरे नहीं छिपती।”
उसकी बात का अर्थ गोकुल समझ गया, क्योंकि सुरेश भी लगभग इसी तरह का धंधा करता है। फर्क बस इतना है कि वह सब कुछ छिपाकर और खुद को बचाकर करता है, जबकि यह आदमी ऐसा करने में माहिर नहीं था। इसलिए पकड़े गए जबकि सुरेश आंखों में गर्वोक्ति साफ़ झलक रही थी ।
बस फिर धीरे-धीरे आगे बढ़ी । लेकिन उस घटना की गूँज देर तक सबके मन में बनी रही।
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