सहारा - प्यार का कहानी Sahara - Love Story

 Sahara - Love Story पति-पत्नी में जब भी लड़ाई होती, तो अक्सर पत्नी हार जाती थी। हाँ, ताकत के मामले में वह अपने पति से कमजोर थी, लेकिन मुंह से नहीं। मुंह एक बार खुल गया तो फिर बंद नहीं होता था। वह सबको सुनाती थीं। आस-पड़ोस, सास-ससुर, कोई ऐसा नहीं था जो उन दोनों की लड़ाई की आवाजें और बातें न सुनता हो। सब कहते थे कि इन लोगों का रिश्ता ऐसे ही चलेगा, जीवन भर।

Sahara - Love Story

उन दोनों में झगडे इसलिए शुरू होते थे । जब राजीव कभी-कभी कभार शराब पी कर आता था, तो संध्या बड़बड़ाने लगती थी ।उस दिन भी ऐसा ही हुआ । 


"अपने मजे बस देखते हो, क्या कभी मेरे लिए कुछ खरीदकर लाए हो? सब पैसों की बर्बादी है। मैं कब से बोल रही हूं, मुझे तीन हजार की साड़ी पहननी है। उस दिन खरीदारी में गए थे, तब कपड़े की दुकान में जो साड़ी दिखाई थी, मुझे बहुत पसंद आई थी, मगर तुमने टोक दिया। यह कहकर कि पैसे नहीं हैं। पीने के लिए और हो गया। बहुत बढ़िया है।" पत्नी ने कहा । 


"दिनभर का थका हारा हूं  । काम से घर आओ, इनका बड़बड़ाना शुरू । भगवान जाने कौन सी गलती कर देता हूं  ! क्या रोज-रोज पीता हूं । कम्पनी में तनाव होता है, तब नींद नहीं आती है , इसलिए थोड़ा बहुत पी लेता हूं । तुम तो कभी सीधे मुंह बात नहीं करती हो । "

पति रक्षात्मक तरीके से कहा । जैसे उसने कोई ग़लती नही की है । 


"बहाना तो अच्छा बना लेते हो। "


"फालतू बातें मत करो । मेरा दिमाग खराब हो जाएगा । तुम्हारा भी शौक क्या कम है?  कितना कुछ कर लो , मगर तुम खुश नहीं होते हो । बाजार जाने की छूट है, तुम्हें । कुछ भी खरीद सकते हो । इस पर मैंने कभी तुम्हें टोका नहीं है । फिर भी, तुम्हें कमी लगती है । भगवान जाने कभी तुम संतुष्ट भी होगे । "


संध्या कुछ नहीं बोली । सीधे ससुर जी को बताने चली गई । 

देख लो तुम्हारे लड़के को । पीकर आते हैं और झगड़ा शुरू कर दिया । क्या मुझे इसलिए ब्याह करके लाया है । मेरी कोई बात नहीं सुनते हैं । आप लोग तमाशा देखते हो । "

बहू की आदत से परिचित ससुर ने कुछ नहीं कहा। कहें भी क्यों? एक ही लड़का है। वह जानता है कि बेटा कभी-कभार पी लेते हैं। क्यों पीते हैं? कभी बताया नहीं है। उसने किसी से बेवजह शिकायत नहीं की। हमेशा चुपचाप खा-पीकर सो जाता है। गांव के पास ही कंपनी खुली है, वहां पर सुपरवाइजर की नौकरी करता है। कोई परेशानी होती होगी, जिसके कारण पीते हैं।


बहु बड़बड़ा कर अपने कमरे में चली गई । जहां से आवाजें आ रही थीं । 


उसी समय पड़ोसी बैठने आया था, जिसे असहज महसूस हुआ। वह उठकर जाने वाला था। तभी राजीव के पिता जी ने धीरे-धीरे से कहा -" बैठो, ये तो अब रोज-रोज की कहानी हो गई है। बहू हमें और इस घर को अभी तक नहीं अपनाया है। शादी हुए अभी दो साल हो गए हैं। उसे महसूस नहीं हुआ है कि वह इस घर का स्थाई हिस्सा है। एक दिन पूरी जिम्मेदारी उनके हिस्से ही आएगी। हम तो दो-चार साल में बूढ़े हो जाएंगे, और क्या पता मर भी जाएं। जीवन इन्हीं लोगों का कठिन है जो एक-दूसरे को समझते ही नहीं हैं।"


पिताजी चिंता और गहरी समझदारी के साथ कहने लगे । जो बहू के घर में समायोजन और भविष्य की जिम्मेदारियों को लेकर चिंतित हैं। वह पड़ोसी के सामने भी अपने दिल की बात कहने से नहीं हिचकिचाएं ।

पड़ोसी "हूं, हां" कहकर चले गए। ज्यादा कुछ न बोल सका। शायद! उनका कहना था कि दूसरों के घर में दखल देना उचित नहीं है। बहू एक कोने पर खड़ी सब कुछ सुन रही थी, फिर भी कुछ न बोली।


उसे अपने अंतर्मन की चेतना कुछ बुझी-बुझी सी लग रही थी, जैसे वह कुछ भूल रही थी या पकड़ नहीं पा रही थी। उसे लगता था कि कुछ गलत है या कोई गलती हो रही है, लेकिन यह स्पष्ट नहीं था। शादी हुए उसे काफी समय बीत चुका था, लेकिन उसे ससुराल जैसा भान नहीं हो रहा था। वह अक्सर अपने परिवार के सदस्यों के साथ बहस कर बैठती थी और किसी का सम्मान नहीं करती थी। उसे लगता था कि उसने इस घर को अभी तक ठीक से स्वीकारा नहीं है, और उसने अपनापन के साथ नहीं अपनाया है। वह खुद को एक अलग पहचान के साथ जीने की कोशिश करती थी, व्यक्तिवादियों की तरह। शायद इसलिए उसे इस घर में सुकून नहीं मिलता था।


वह सोचती थी कि शायद यही कारण है कि उसे अपने ससुराल में वह खुशी और सुकून नहीं मिल पा रहा है जिसकी उसे तलाश थी। वह चाहती थी कि उसे अपने परिवार के सदस्यों के साथ एक मजबूत बंधन महसूस हो, लेकिन अभी तक ऐसा नहीं हो पाया था। 


रात में जब सभी काम करके अपने कमरे में गई तो राजीव मुंह फेर कर सो रहा था । मन नहीं था कि उसे जगाएं लेकिन रहा नहीं गया । 


"क्यों,नाराज हो गए !"


"मैं क्यों नाराज होऊंगा, किसी के लिए? यहां कौन समझता है मुझे? मैं मरूं या जिऊं, किसी को कोई मतलब नहीं है। कंपनी में जाऊं तो मालिक सुनाते हैं, घर आऊं तो पत्नी। इसलिए शराब का सहारा लेता हूं। मैं जानता हूं ये मेरा इलाज नहीं है, लेकिन तुम बन सकते हो। मैं भी प्यार चाहता हूं। थका हारा आने पर कम से कम तुम तो हंसकर बात कर लिया करो, लेकिन नहीं। तुम्हें अपनी पड़ी रहती है। कितना अलगाव है। यदि तुम कहो तो मैं पीना छोड़ सकता हूं, लेकिन तुम्हें भी बेवजह बड़बड़ाना बंद करना होगा। मुझसे बातें करनी होंगी, मेरी समस्याओं को जानना होगा।"


गहरी हताशा और दर्द के साथ कहा ।‌

जो अपने जीवन में प्यार और समझ की कमी को महसूस कर रहा है। वह अपनी पत्नी से अपील कर रहा है कि वह उसके साथ सहानुभूति और समझ के साथ पेश आए और उसके जीवन को बेहतर बनाने में मदद करे।


"ठीक है, आज से मैं नहीं करूंगी।" संध्या पूरे समर्पण के साथ बोली, जैसे उसके चेहरे पर समझ की किरण खिल उठी हो। उसकी आवाज में एक नए वादे की गहराई थी, जो उसके पति के प्रति उसके बदलते दृष्टिकोण को दर्शा रही थी। 


" मैंने ऐसा नहीं कहा है कि तुम कुछ भी न बोलों । कहना जरूरी है । लेकिन बेवजह मत कहो । मैं आज से पीना छोड़ दुंगा और तुम रखो पैसे अपने लिए साड़ी खरीद लेना ।" 


"बुरा मानकर दे रहे हो !"


"नहीं, ये भी जरूरी है । आखिर तुम्हारे शौक की पूर्ति करना मेरा कर्तव्य है और मुझे खुश रखना तुम्हारा ।"


दोनों मुस्कुराते हुए एक दूसरे के नजदीक आ गए। बातों का सिलसिला एक बार शुरू हुआ, उसके बाद चलते रहें। दोनों के दिल खुले, तो मन भी मिले। उस दिन से संध्या ने तीन हजार की साड़ी कभी नहीं खरीदी और राजीव ने कभी शराब नहीं पी। दोनों को इन चीजों 

की जरूरत नहीं थी, बल्कि एक दूसरे की जरूरत थी।


Reactions

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ