अभी शिक्षित नहीं हुआ है - कविता

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 अभी शिक्षित नहीं हुआ है

नहीं विनम्र हुआ है
किसी सच्चाई को
स्वीकार करने में
एक मुर्खता है
उसके अंदर
जो अपने सिवा किसी को
मानता ही नहीं
जानता ही नहीं
हालांकि बड़े विश्वविद्यालय से
डिग्रियां मिली है उसको
जिस पर दंभ भरते हैं
लेकिन किस काम का
जो जानता नहीं सबको
मानता नहीं है सबको
सिवाय खुद को
अंहकार लेकर
शिक्षित हुआ है
बड़े विश्वविद्यालय से
 अभिव्यक्ति की आजादी में
उच्छृंखलता है उसकी
जिसकी वजह से
मुर्खता है उसमें 
भेद नहीं कर पाते हैं 
कब बोला जाय
कहां मुंह खोला जाय !!!!!

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अभी शिक्षित कहां हुआ है 
बस शिक्षित होने का दावा करते हैं 
हिन्दुओं की आस्थाओं पर धावा करते हैं 
इसलिए नहीं कि वे ग़लत है 
बल्कि इसलिए कि 
वो खुद ग़लत है 
उसके पास बेहतर होने का सबूत नहीं है 
इसलिए हिन्दुओं की लकीरें काट रहे हैं 
और पर्चे शिक्षित होने की बांट रहे हैं !!!!


मुफ्त के खाने वालों ने 
अधिकार जान लिया 
लड़ लिया 
सरकारों से 
क्योंकि उसकी भीड़ थी 
मनवा लिया 
सरकारों से अपनी बात 
लेकिन जो खुद्दार थे 
वे खेतों के काम से 
फुर्सत नहीं निकाल पाया 
मुफ्त के खाने के लिए !!!!


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