Ghazal on social system
क्या ढूॅंढते हो बाजारों में
जहॉं खरीददार है हजारों में
मोल भाव का न फ़िक्र कर
खरीद ले जाएंगे निगाहों में
बहुत कातिल है उसकी अदा
बड़ी साज़िश है उसकी निगाहों में
खुद को संभाल के चलो यारों
कोई लूट न लें जाए ऐसे हालातों में !!!
Ghazal on social system
बाजार का भाव न पूछ
अच्छे इंसानों की कीमत घट गई है
जो बुरे हैं उसकी क़ीमत बढ़ गई है
यकीं नहीं तो अजमा लें
सच से ज्यादा झूठ की अहमियत हो गई है !!!!
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