Poem on rain पहली बारिश की बूंदें जब जमीन पर पड़ती है । सालों से जमी पर पड़े बीज प्रफुल्लित हो कर फुट पड़ता है । अंकुरित होने, पेड़ बनने के लिए । साथ-साथ ही जमीं भी खुशी से महक उठती है । बूंदों के पड़ते ही । किसानों के चेहरे भी खिल उठते हैं । समस्त जीव जंतु जो साल भर से बारिश की बूंदें का इन्तजार कर रहे थे । उसकी मनोकामना पूरी हो जाती है । पढ़िए इस पर कविता 👇👇
Poem on rain
पहली बारिश
संतोष की बूंदें
तपती धरती के लिए
एक किसान के लिए
एक बच्चें के लिए
जो कैद करना चाहता है
अपनी हथेली पे
एक किसान अपने खेत में
प्यासी धरती
अपने सीने में
पहली बारिश की बूंदें !!!
बारिश की बूंदें
पहली बारिश की बूंदें
जब भी गिरना
धरती के सीने में
झमाझम गिरना
लगातार गिरना
कहीं कमी न रह जाए
प्यास बुझाने में
तब तक गिरना !!!
पहली बारिश की बूंदें
पड़ते ही
महसूस होने लगे थे
जमीं की सौंधी खुशबू
बीजों की तत्परता
पेड़ बनने की
मेढकों ने टर्रा कर स्वागत किया था
झींगुरों ने राग अलाप कर
किसान बैठे-बैठे
बारिश की बूंदें गिन रहे थे
इस तरह
सालभर से
इन्तजार था
तुम्हारा !!!
पहली बारिश की बूंदों को
खुद में समा लेती है
ज़मीं
घनघोर बूंदों को
सागर की ओर
ले जाती है
जमीं
जहां सागर
वाष्पीकरण कर
बादल से
मिला देता है
बारिश की बूंदें बनने के लिए !!!
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1 टिप्पणियाँ
बहुत सुंदर
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