poem without oxygen
हम भूल गए थे
अपने ही भाग दौड़ में
सॉंसों की गति को
उसकी निरंतरता को
कब लेते थे
कब छोड़ते थे
खबर नहीं थी
बस जी रहे थे
यूॅं ही
अपने ही भाग दौड़ में
हम भूल गए थे
पेड़ों का हरापन
उसके आक्सीजन
न जाने कहॉं से
आ रही थी
जीवनदायिनी प्राणवायु को
फुर्सत नहीं थी
महसूसने की
हम भूल गए थे
क्रांकिट के मकानों में
तुलसी के पौधे के लिए
एक जगह बनाना
कृत्रिम निर्माण में
ए.सी.और कूलरों की
ठंडी हवाओं में
वास्तविक हवाओं को
शुद्ध रखना
निरंतर दोहन में
हम भूल गए हैं
अपनी ही चाल में
लेकिन जब जरूरत पड़ी
एक-एक साॉंसे टूट पड़ी
शुद्ध आक्सीजन बिना
तब याद आया
आक्सीजन
कितनी जरूरत है
जीवन के लिए
जीने के लिए !!!
---राजकपूर राजपूत''राज'
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