गांव छोड़ के शहर जाना ठीक नहीं
आरजू मार देती है अक्सर इंसानों को
बेवजह आजकल भटकना ठीक नहीं
मोहब्बत दो दिलों का रिश्ता है यारो
जो ना समझे उसे समझाना ठीक नहीं
जरूरी नहीं हर चाहत तुम्हें खुशी दे
होश न रहे इतना भी पीना ठीक नहीं
लोग आए हैं महफिल में मगर जाएंगे भी
बिना ज़िंदगी को जीए चले जाना ठीक नहीं
चालाकियों का दौर है 'राज' ज़रा सम्भल के रहो
ऐरो-गैरों से दोस्ती का हाथ बढ़ाना ठीक नहीं
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