संवाद के लिए - कविता

मैं हारा नहीं हूॅं
तेरी बातों से
हताश हूॅं
तुने मेरे शब्दों को
चतुराई से
मोड़ दिया है
जो हर सच में होता है
हर झूठ में होता है
एक अपवादस्वरूप
कमजोरी
सच और झूठ के रूप में
जिसे तुम
तर्क करने के लिए
थकाने के लिए
कुछ बातें
स्वार्थ की पूर्ति में
उपयोग करते हो
मनमाफिक इरादों को
पाने के लिए
जिसे मैं जानता हूॅ॑
लेकिन मैं
कह नहीं पाता हूॅ॑
क्योंकि तुम कमजोर हो
असभ्य हो
तुम्हारी भाषा असभ्य है
जो कहीं ठहरते नहीं
सभ्य लोगों के बीच में
संवाद के लिए
---राजकपूर राजपूत''








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